सुप्रीम कोर्ट ने कमल देव प्रसाद बनाम महेश फोर्ज वाद में 29 अप्रैल 2025 को निर्णय सुनाते हुए कहा कि कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम, 1923 की अनुसूची में निर्दिष्ट अक्षमता प्रतिशत अंतिम नहीं है और यदि किसी दुर्घटना से कर्मचारी के कार्यकारी अंग — जैसे कि हाथ — की कार्यशीलता गंभीर रूप से प्रभावित हो, तो कार्यात्मक अक्षमता अधिक मानी जा सकती है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने आयोग द्वारा दिए गए प्रतिकर और ब्याज को आंशिक रूप से बहाल करते हुए अक्षमता को 50% मानते हुए भुगतान का आदेश दिया।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ता कमल देव प्रसाद 5 अप्रैल 2002 से महेश फोर्ज में एक फोर्जिंग मशीन ऑपरेटर के रूप में कार्यरत थे और ₹2,500 मासिक वेतन पा रहे थे। 6 नवंबर 2004 की रात मशीन पर काम करते समय उनका दायां हाथ मशीन में फंस गया, जिससे गंभीर चोटें आईं। उनकी छोटी उंगली का एक, अनामिका का दो, मध्यमा का तीन और तर्जनी उंगली का ढाई फालैन्क्स कट गया। वह 24 दिसंबर 2004 तक अस्पताल में भर्ती रहे।
आयोग ने उन्हें ₹3,20,355 प्रतिकर, 12% ब्याज और 50% दंड (₹1,60,178) देने का आदेश दिया। नियोक्ता ने इसके विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की, जहां अक्षमता को घटाकर 34% कर दिया गया।

पक्षकारों की दलीलें:
अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता विद्या विजयसिंह पवार ने तर्क दिया कि चार उंगलियों की चोटों ने कार्य करने की क्षमता पर गंभीर असर डाला है, इसलिए आयोग का निर्णय सही था। प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता अमोल चितले ने कहा कि अधिनियम की अनुसूची के अनुसार केवल 34% की ही क्षति मानी जा सकती है, और कोई चिकित्सकीय प्रमाणपत्र भी नहीं प्रस्तुत किया गया।
सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन:
पीठ ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी बनाम मोहम्मद नासिर, (2009) 6 SCC 280 के निर्णय का हवाला देते हुए दोहराया कि कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम एक कल्याणकारी विधि है और इसे उदारता से पढ़ा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा:
“ऐसा नहीं है कि कार्यात्मक अक्षमता निर्धारण के लिए अनुसूची से कभी भी विचलन नहीं किया जा सकता, बल्कि कुछ मामलों में कार्यात्मक और शारीरिक अक्षमता का संबंध होना स्वाभाविक है।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि अनुसूची के अनुसार भी चार उंगलियों की सामूहिक क्षति 37% बनती है। साथ ही यह कहा कि:
“यद्यपि 100% अक्षमता निर्धारित नहीं की जा सकती… हम इसे 50% कार्यात्मक अक्षमता मानने के पक्ष में हैं।”
अंतिम निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने ₹3,20,355 प्रतिकर को यथावत रखते हुए, उसे 50% (₹1,60,177.50) के रूप में मान्य किया। इसके साथ ही 12% ब्याज तथा ₹80,088.75 दंड देने का निर्देश दिया। यदि उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित राशि पहले ही दी जा चुकी हो, तो शेष अंतर को 12% ब्याज एवं अतिरिक्त दंड सहित दिया जाए।
अपील स्वीकृत कर दी गई और लंबित सभी आवेदन समाप्त माने गए।