छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की व्याख्या करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि किसी नाबालिग को, यदि उसे वयस्क के रूप में ट्रायल किया गया हो, आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है — लेकिन वह सजा रिहाई की संभावना के साथ होनी चाहिए, न कि बिना क्षमा (remission) के आजीवन कारावास।
क्रिमिनल अपील नंबर 1478 ऑफ 2022 में सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने एक नाबालिग अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) से बदलकर धारा 304 भाग-2 (गैर इरादतन हत्या) कर दिया और सजा को 10 साल से घटाकर 6 साल का साधारण कारावास कर दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का है, जहाँ 11 जून 2019 की रात एक पारिवारिक विवाद में एक नाबालिग ने अपनी बहन की हत्या कर दी थी। उस समय वह 18 वर्ष से कम उम्र का था। परिवार के रात के खाने और आंगन में सो जाने के बाद वह देर से घर लौटा और अपनी बहन से खाना माँगा। बहन द्वारा डांटने और थप्पड़ मारने पर, उसने गुस्से में आकर कुल्हाड़ी के कुंद हिस्से से दो बार सिर पर वार किया जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
अगले दिन उनके पिता मेला राम कंवर (PW-1) ने FIR दर्ज करवाई। जांच के बाद चार्जशीट दायर की गई और नाबालिग होने के कारण पहले उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया गया। लेकिन अपराध की गंभीरता को देखते हुए मामला स्पेशल जुवेनाइल कोर्ट (FTC), कोरबा को सौंपा गया, जिसने उसे वयस्क के रूप में ट्रायल किया।
निचली अदालत का फैसला
17 अगस्त 2022 को विशेष किशोर अदालत ने अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया और 10 साल का साधारण कारावास तथा ₹100 जुर्माने की सजा सुनाई। हालांकि, धारा 302 के अंतर्गत निर्धारित सजा या तो आजीवन कारावास होती है या मृत्युदंड।
हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने माना कि:
- ट्रायल कोर्ट ने कानूनी गलती की, क्योंकि धारा 302 के तहत 10 साल की सजा विधिसम्मत नहीं है।
- यह घटना अचानक हुई लड़ाई और क्रोध में आई प्रतिक्रिया का परिणाम थी।
- हमले में कुल्हाड़ी का कुंद हिस्सा प्रयोग किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि हत्या की मंशा नहीं थी।
- “अपीलकर्ता का इरादा मृत्यु का नहीं था… लेकिन उसे यह ज्ञान अवश्य रहा होगा कि ऐसी चोटें मृत्यु का कारण बन सकती हैं,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने आईपीसी की धारा 300 के एक्सेप्शन 4 का हवाला दिया, जो ऐसे मामलों में लागू होता है जहाँ हत्या पूर्व नियोजित न हो, लड़ाई अचानक हो, क्रोध में हो और क्रूरता न हो।
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट पर स्पष्टता
कोर्ट ने जेजे एक्ट, 2015 की धाराओं 15, 18, 19 और 21 की व्याख्या करते हुए कहा:
“किसी भी नाबालिग को मृत्युदंड या बिना रिहाई की संभावना के आजीवन कारावास नहीं दिया जा सकता — न इस अधिनियम के तहत, न ही आईपीसी के अंतर्गत।”
कोर्ट ने दोहराया कि नाबालिग को वयस्क के रूप में ट्रायल कर सजा दी जा सकती है, लेकिन वह सजा हमेशा पुनर्वास की संभावना के साथ होनी चाहिए।
महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के संदर्भ
कोर्ट ने Shilpa Mittal v. State of NCT of Delhi (2020) और Arjun v. State of Chhattisgarh (2017) मामलों का हवाला देते हुए कहा कि गंभीर से गंभीर अपराध में भी नाबालिगों को पुनर्वास की आशा से वंचित नहीं किया जा सकता।
अंतिम निर्णय
- आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि को हटाया गया।
- धारा 304 भाग-2 के तहत दोषसिद्धि दी गई।
- सजा को घटाकर 6 साल का साधारण कारावास किया गया।
- कोर्ट ने कहा कि यह घटना धारा 300 के अपवाद 4 के चारों बिंदुओं पर खरी उतरती है: (i) अचानक लड़ाई, (ii) पूर्वनियोजन नहीं, (iii) क्रोध में कार्य, (iv) क्रूरता नहीं।
- कोर्ट ने अपीलकर्ता को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के अधिकार की जानकारी विधिक सहायता के माध्यम से देने का निर्देश दिया।
विधिक पक्षकार
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री विकास कुमार पांडेय, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री भरत गुलबानी, पैनल वकील
