न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने अपने आधिकारिक आवास पर नकदी मिलने को लेकर उठे विवाद और सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच समिति द्वारा “दुराचार” का दोषी ठहराए जाने के बावजूद इस्तीफा या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से इनकार कर दिया है। उन्होंने 6 मई को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को भेजे एक तीखे पत्र में इस प्रक्रिया को “मूल रूप से अन्यायपूर्ण” बताते हुए व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर न दिए जाने पर गंभीर आपत्ति जताई।
यह मामला 14 मार्च को सामने आया जब दिल्ली में न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास के आउटरूम में आग लगने की घटना हुई। दमकल कर्मियों को वहां बोरे में रखे जले हुए करेंसी नोट मिले। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना को सूचित किया।
इसके बाद 22 मार्च को तीन न्यायाधीशों की इन-हाउस जांच समिति गठित की गई, जिसमें न्यायमूर्ति शील नागू (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट), न्यायमूर्ति जी.एस. संधवालय (तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट) और न्यायमूर्ति अनु शिवरामन (कर्नाटक हाईकोर्ट) शामिल थे। समिति ने 3 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा को “दुराचार” का दोषी पाया गया।
रिपोर्ट प्राप्त होने के कुछ ही घंटों के भीतर उन्हें 4 मई को तत्कालीन सीजेआई द्वारा पत्र भेजा गया, जिसमें उन्हें 48 घंटों के भीतर इस्तीफा देने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने की सलाह दी गई थी, अन्यथा रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को अग्रेषित करने की चेतावनी दी गई।
इसके जवाब में, 6 मई को न्यायमूर्ति वर्मा ने विस्तृत पत्र लिखकर गहरी आपत्ति जताई। उन्होंने लिखा,
“ऐसी सलाह को स्वीकार करना उस प्रक्रिया और परिणाम को मान लेने जैसा होगा, जिसे मैं मूल रूप से अन्यायपूर्ण मानता हूं और जिसकी पुनर्विचार और समीक्षा आवश्यक है।”
उन्होंने आगे लिखा,
“मैंने इस संस्था की सेवा 11 वर्षों से अधिक समय तक की है। ऐसा कोई निर्णय 48 घंटे की समय सीमा में नहीं लिया जा सकता और न ही लिया जाना चाहिए।”
न्यायमूर्ति वर्मा ने यह भी कहा कि उन्हें न तो व्यक्तिगत रूप से सुना गया और न ही समिति के प्रारंभिक निष्कर्षों की जानकारी दी गई। “मुझे कभी भी यह अवसर नहीं दिया गया कि मैं रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों का सार्थक रूप से जवाब दे सकूं।”
अपने पत्र में उन्होंने न्यायमूर्ति सौमित्र सेन के मामले का हवाला दिया, जिसमें जांच समिति की रिपोर्ट के बाद उन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के समक्ष लिखित उत्तर देने और व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया गया था। उन्होंने कहा कि उनके साथ ऐसा कोई अवसर नहीं दिया गया, जो स्थापित प्रक्रिया से स्पष्ट विचलन है।
रिपोर्ट के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को न्यायिक कार्य से हटाकर उनके मूल स्थान इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया। यह मामला अब राजनीतिक रंग भी ले चुका है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने पुष्टि की कि सरकार ने न्यायमूर्ति वर्मा के पद से हटाने के लिए विपक्ष से समर्थन मांगा है। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल आगामी मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला सकते हैं।
इसी बीच उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने भी 19 मई को एक सार्वजनिक कार्यक्रम में इन-हाउस जांच प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता पर प्रश्न उठाए और इसकी बजाय औपचारिक आपराधिक जांच की वकालत की।
अपने पत्र के अंतिम भाग में न्यायमूर्ति वर्मा ने लिखा,
“मैं अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार सुरक्षित रखता हूं।”
साथ ही उन्होंने यह भी आग्रह किया कि रिपोर्ट की गोपनीयता बनाए रखी जाए, जैसा कि पूर्व में होता रहा है।