सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के जस्टिस विनीत शरण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के संग्रहालय और लेखागार के उदघाटन के दौरान कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करने वालों के लिए एक प्रसिद्ध जुमला है- चल गई वकालत तो मोतीलाल नही तो जवाहरलाल।
जस्टिस शरण ने इस संग्रहालय में रखी पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के उस पत्र का भी जिक्र किया जो उन्होंने विधि रिपोर्टर के रूप में अपनी नियुक्ति के लिए आवेदन के तौर पर लिखा था।
गौरतलब है कि नेहरू के पिता मोतीलाल अपने वक्त में इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता थे। जस्टिस शरण ने विनोदपूर्ण अंदाज में कहा की अगर पंडित नेहरू का आवेदन स्वीकृत कर लिया गया होता तो इस देश का भाग्य बदल गया होता। आगे उन्हने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट का संग्रहालय देश के समस्त उच्च न्यायालय में प्रथम संग्राहलय रहा है। इसकी शुरुआत छोटे कमरे से चालू हुई और मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और अन्य न्यायधीशों के प्रयासों से एक विशाल भवन में तब्दील हुआ।
आयोजित हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को राष्ट्रीय संग्रहालय घोषित करने के इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर के अनुरोध पर कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से भारत के मुख्य न्यायाधीश से इस संबंध में वार्तालाप कर अनुरोध करेंगे।
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जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि न्यायमूर्ति एसके सेन के कार्यकाल के दौरान में हाईकोर्ट संग्राहलय मुख्य भवन के गलियारे को घेर का शुरू किया गया था। हमने कई अरबी और पारसी पाण्डुलिपियों का अनुवाद करवाया। आगे कहा कि इस संग्रहालय में मूल चार्टर और पूरक चार्टर के साथ ही के ऐसे मामलों की सुनवाई के दस्तावेज हैं जिनका आजादी के आंदोलन की शुरुआत में अहम भूमिका रही है। इसमे मुगल शासकों के फरमान शामिल है।
यूट्यूब के जरिये इस उदघाटन कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया गया। जिसमे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश कृष्ण मुरारी ,जस्टिस विनीत शरण ,जस्टिस अशोक भूषण,जस्टिस कृष्ण मुरारी और इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर , गुजरात हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्तल ने इस संग्रहालय के विकास को लेकर अपनी यादें साझा करी। इस मौके पर इलाहाबाद हाई कोर्ट में 4 स्वचालित सीढ़ियों का भी उदघाटन किया गया।