दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने की घटना के बाद न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर आरोपों की जांच कर रही तीन-न्यायाधीशों की समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि न्यायमूर्ति वर्मा जलकर राख हुई नकदी की उपस्थिति का कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दे सके। समिति ने यह भी पाया कि उनके निजी कर्मचारियों ने घटना के बाद संदिग्ध रूप से नकदी को वहां से हटाया। रिपोर्ट में उनके आचरण को “अस्वाभाविक” करार देते हुए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की गई है।
क्या हुआ था?
14 मार्च 2025 की रात करीब 11:35 बजे दिल्ली के तुगलक क्रेसेंट स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी। आग बुझाने पहुंचे दमकल कर्मियों और पुलिसकर्मियों ने स्टोर रूम में जली हुई ₹500 के नोटों की गड्डियाँ देखीं। रिपोर्ट के अनुसार, “स्टोर रूम में जली हुई नकदी की उपस्थिति प्रत्यक्षदर्शियों और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों द्वारा सिद्ध होती है।”
पैनल के अनुसार, कम से कम 10 गवाहों ने स्टोर रूम में जली हुई या अधजली नकदी देखे जाने की बात कही। एक दमकल अधिकारी ने बताया, “मैं जैसे ही अंदर गया, तो देखा कि दाईं ओर और सामने ₹500 के नोटों की बड़ी मात्रा में नकदी बिखरी हुई थी, जो मैंने जीवन में पहली बार देखी थी।”
जांच समिति की संरचना और निष्कर्ष
यह समिति तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 22 मार्च 2025 को गठित की गई थी। इसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थीं।
समिति ने निम्नलिखित तीन प्रश्नों पर जांच की:
- क्या स्टोर रूम में जली हुई नकदी मिली? — हाँ, यह गवाहों और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से सिद्ध होता है।
- क्या स्टोर रूम न्यायमूर्ति वर्मा के आवास का हिस्सा था? — हाँ, यह उनके और उनके परिवार के नियंत्रण में था।
- क्या न्यायमूर्ति वर्मा नकदी की उपस्थिति का स्पष्टीकरण दे पाए? — नहीं, उन्होंने केवल इसे साजिश बताया, लेकिन कोई साक्ष्य नहीं दिया।
समिति ने कहा, “जली हुई नकदी की उपस्थिति को स्थापित किए जाने के बाद यह न्यायमूर्ति वर्मा पर था कि वे इसका स्पष्टीकरण दें, जो वे नहीं दे सके।”
नकदी हटाने की साजिश
रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 मार्च की सुबह आग बुझने के बाद जली हुई नकदी को हटाया गया। इसमें न्यायमूर्ति वर्मा के निजी सचिव राजिंदर सिंह कार्की और घरेलू कर्मचारी राहिल और हनुमान प्रसाद शर्मा की भूमिका संदिग्ध पाई गई।
कार्की ने दमकल कर्मियों को नकदी का जिक्र रिपोर्ट में न करने की हिदायत दी और अगले दिन कमरे की सफाई करवाई, जिसे उन्होंने नकारा, पर अन्य गवाहों और वीडियो फुटेज ने उसे झूठा सिद्ध किया।
आचरण पर कठोर टिप्पणी
रिपोर्ट में न्यायिक आचरण पर टिप्पणी करते हुए कहा गया:
“न्यायिक पद की पूरी नींव नागरिकों के विश्वास पर टिकी होती है… इस विश्वास में किसी भी प्रकार की कमी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।”
रिपोर्ट में “Restatement of Values of Judicial Life (1997)” का हवाला देते हुए कहा गया:
“उच्च न्यायपालिका के किसी सदस्य से सार्वजनिक जीवन में सबसे अधिक ईमानदारी और निष्कलंक चरित्र की अपेक्षा की जाती है।”
न्यायमूर्ति वर्मा का पक्ष
जांच रिपोर्ट के जवाब में भेजे गए 101 पन्नों के अपने जवाब में न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि उन पर दोष साबित करने का अनुचित बोझ डाला गया। उन्होंने खुद को साजिश का शिकार बताया और जांच की प्रक्रिया को “मूल रूप से अन्यायपूर्ण” करार दिया।
वह आग लगने के समय भोपाल में थे और घटना के बाद भी उन्होंने स्टोर रूम का दौरा नहीं किया, न ही उन्होंने किसी एजेंसी को शिकायत दी। CCTV फुटेज को सुरक्षित करने का प्रयास भी नहीं किया गया।
वर्तमान स्थिति
न्यायमूर्ति वर्मा को हाल ही में उनके मूल न्यायालय इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया गया है, जहां उन्हें अभी कोई न्यायिक कार्य आवंटित नहीं किया गया है। उन्होंने न तो इस्तीफा दिया है और न ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना है।
अब इस रिपोर्ट को लेकर आगे की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट और संसद की प्रक्रिया तय करेगी।