न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर बड़ी मात्रा में अवैध नकदी मिलने के मामले में इन-हाउस जांच रिपोर्ट के निष्कर्षों के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की गई है, जिसमें इस प्रकरण में एफआईआर दर्ज कर आपराधिक जांच शुरू करने की मांग की गई है।
यह याचिका अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुमपरा और तीन अन्य व्यक्तियों द्वारा दाखिल की गई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि चूंकि जांच समिति की रिपोर्ट अब मुख्य न्यायाधीश (CJI) को सौंप दी गई है और उन्होंने यह रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी है, इसलिए अब इस मामले में आपराधिक कार्रवाई आवश्यक हो गई है।
पृष्ठभूमि: न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से नकदी की बरामदगी
यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब 22 मार्च को दिल्ली उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास के आउट-हाउस में आग बुझाने के दौरान बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की खबरें सामने आईं। इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन जजों की एक जांच समिति का गठन किया था।
इस विवाद के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट, स्थानांतरित कर दिया गया और उनके न्यायिक कार्यों से उन्हें पृथक कर दिया गया।
पहले भी दाखिल की गई थी याचिका, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था “असमय”
मार्च में भी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी जिसमें इन-हाउस जांच की वैधता को चुनौती दी गई थी और आपराधिक जांच की मांग की गई थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया था कि, “इस चरण पर इस रिट याचिका को विचारार्थ लेना उपयुक्त नहीं होगा” और याचिकाकर्ताओं को सलाह दी थी कि वे पहले जांच रिपोर्ट का इंतजार करें।
के. वीरास्वामी निर्णय पर पुनर्विचार की मांग
नई याचिका में याचिकाकर्ताओं ने के. वीरास्वामी बनाम भारत संघ निर्णय में दिए गए उस दिशा-निर्देश पर भी आपत्ति जताई है जिसमें किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले मुख्य न्यायाधीश की अनुमति आवश्यक बताई गई है। याचिका में कहा गया है कि यह प्रावधान “कानून के अनुरूप नहीं है” और इस पर पुनर्विचार आवश्यक है।
याचिका में कहा गया है, “यह एक ऐसा प्रकरण है जिसमें न्याय की बिक्री से कालाधन एकत्र किया गया। यहां तक कि अगर न्यायमूर्ति वर्मा का पक्ष भी माना जाए, तो भी यह सवाल बना रहता है कि उन्होंने स्वयं एफआईआर दर्ज क्यों नहीं करवाई। देर से ही सही, एफआईआर दर्ज कराना आवश्यक है ताकि पुलिस साजिश के पहलुओं की जांच कर सके।”
केवल महाभियोग पर्याप्त नहीं, दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि केवल महाभियोग या पद से हटाना पर्याप्त नहीं है। “जब कोई न्यायाधीश, जो न्याय का रक्षक है, स्वयं आरोपी हो, तो यह कोई साधारण अपराध नहीं है। इसकी गंभीरता कहीं अधिक है और दंड भी उसी अनुरूप होना चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि केवल आंतरिक जांच से पूरे मामले का खुलासा नहीं हो सकता। पुलिस द्वारा जांच ही यह पता लगा सकती है कि किन-किन व्यक्तियों ने रिश्वत दी, कौन लाभार्थी थे, और कौन से मामले में निर्णय खरीदने का प्रयास किया गया।
फिलहाल, इन-हाउस रिपोर्ट की आधिकारिक प्रति सार्वजनिक नहीं हुई है और राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री द्वारा इस पर किसी कार्यवाही की पुष्टि नहीं की गई है। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तिथि अभी निर्धारित नहीं हुई है।