सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस उज्जल भुइयां ने रविवार को यह स्पष्ट किया कि यह आलोचना कि “निर्वाचित न होने के कारण न्यायाधीशों को कानून बनाने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए” — न तो कानूनी रूप से उचित है और न ही संविधान में इसका कोई आधार है।
यह टिप्पणी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस अभय एस. ओका के सम्मान में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा द्वारा आयोजित विदाई समारोह में दी।
जस्टिस भुइयां ने कहा:

“मेरे अनुसार, यह आलोचना कि संविधानिक अदालतों के निर्वाचित न होने वाले न्यायाधीशों को जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा बनाए गए कानूनों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए — न तो कानूनी रूप से उचित है और न ही इसका कोई संवैधानिक आधार है। संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति दी है कि वह संसद द्वारा बनाए गए कानून की संवैधानिक मानकों के अनुरूप जांच कर सके और यदि वह असंवैधानिक हो तो उसे निरस्त कर सके।”
जस्टिस भुइयां ने इस दौरान राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) कानून को रद्द करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पूर्व केंद्रीय कानून मंत्री अरुण जेटली द्वारा की गई आलोचना का भी उल्लेख किया।
अरुण जेटली ने कहा था कि सांसद जनता द्वारा चुने जाते हैं और उन्हें जवाबदेह होते हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को ‘जनता की इच्छा’ को निरस्त नहीं करना चाहिए था।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस भुइयां ने कहा कि एनजेएसी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी संवैधानिक अधिकारिता के तहत न्यायिक समीक्षा (judicial review) की शक्ति का प्रयोग किया था, जो उसे संविधान द्वारा प्रदान की गई है।
जस्टिस भुइयां ने यह भी कहा कि एक स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए निडर और साहसी न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है।
“इतिहास में हमें हमेशा साहसी और स्वतंत्र न्यायाधीश मिले हैं, और आगे भी मिलते रहेंगे। इसी से हमारा संविधान जीवित रहता है, हमारी न्यायिक परंपरा जीवित रहती है और हमारा लोकतंत्र जीवित रहता है,” उन्होंने कहा।