सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने शनिवार को कहा कि सिर्फ इसलिए कि फैसला लिखने वाले जज बदल गए हैं, उच्चतम न्यायालय के निर्णयों को “तुरंत पलट देना” उचित नहीं है। हरियाणा के सोनीपत स्थित ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में आयोजित International Convention on the Independence of the Judiciary में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अदालतों के फैसलों को समय के साथ स्थिरता मिलनी चाहिए, क्योंकि वे “रेत पर नहीं, स्याही में लिखे जाते हैं।”
उन्होंने कहा, “न्यायिक स्वतंत्रता की विकसित समझ यह आश्वासन मांगती है कि एक बार दिया गया निर्णय समय में अपना लंगर डाले रहेगा। यह रेत में नहीं, स्याही में लिखा गया है। इसलिए कानून व्यवस्था और शासन ढांचे से जुड़े सभी प्रतिभागियों का कर्तव्य है कि वे निर्णय का सम्मान करें, और केवल इसलिए उसे उछालने का प्रयास न करें कि चेहरे बदल गए हैं।”
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका शासन व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा है। उदार locus standi, व्यापक शक्तियों और विभिन्न प्रकार के उपायों के कारण अदालतों के सामने देश के भविष्य से जुड़े अनेक प्रश्न आते हैं।
उन्होंने कहा, “आज अदालत से अपेक्षा की जाती है कि जब भी किसी नियम का उल्लंघन हो, वह कानून के शासन को सुनिश्चित करे।”
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता केवल फैसलों से ही नहीं, बल्कि न्यायाधीशों के निजी आचरण से भी सुरक्षित होती है। किसी जज का व्यवहार संदेह से परे माना जाना चाहिए और न्यायपालिका के लिए राजनीतिक निष्पक्षता अत्यंत आवश्यक है।
उनके वक्तव्य से कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इस “बढ़ते चलन” पर चिंता जताई थी कि असंतुष्ट पक्षकार विशेष रूप से गठित नई पीठों के सामने पुराने फैसलों को पलटने की मांग कर रहे हैं।
26 नवंबर को जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा था कि फैसलों की अंतिमता को बरकरार रखना आवश्यक है, क्योंकि इससे अनंत मुकदमेबाज़ी रुकती है और जनता का न्यायपालिका में विश्वास मजबूत रहता है।

