नई दिल्ली-जस्टिस राजिंदर सच्चर की आत्मकथा “In pursuit of Justice an autobiography “ के लोकार्पण कार्यक्रम में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और न्यायपालिका विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन भी हुआ। इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जस्टिस मदन बी लोकुर वरिष्ठ अधिवकता कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने शिरकत की। इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने किया।
क्या बीते वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक न्याय को ठंडे बस्ते में डाल दिया है इस प्रश्न के जवाब में जस्टिस लोकुर ने सहमति जताते हुए कहा है जहां तक सामाजिक न्याय का संबंध है सुप्रीम कोर्ट ने अपना रास्ता खो दिया है। उन्होंने कहा कि आज से लगभग 6 से 7 वर्ष पूर्व जब सुप्रीम कोर्ट की सामाजिक न्याय पीठ का उदघाटन किया गया था टैब उसमे सर्वप्रथम जिस मामले की सुनवाई हुई थी।
वह सोशल वर्कर मेधा पाटकर की तरफ से दायर सरदार सरोवर बांध की विस्थापतों के पुनर्वास का मामला था। उस वक्त हम कई तरह के मुद्दों का निस्तारण करते थे। लेकिन पिछले दो वर्षों से सामाजिक न्याय को दरकिनार कर दिया गया है। महामारी के कारण सुप्रीम कोर्ट को अधिक से अधिक सक्रिय होना चाहिए था। प्रावसी मजदूरों का मुद्दा था लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने जो किया उससे बेहतर किया जा सकता था। इसलिए मैं मानता हूं कि सामाजिक न्याय को बैकबर्नर पर रख दिया गया है। मगर दुर्भाग्य से हमे इसके साथ रहना होगा।
जस्टिस लोकुर की इस बात पर सहमति जताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि भारत के संविधान और सुप्रीम कोर्ट में मुख्य स्थान है। जिसे वह राष्ट्र का रक्षक कहते है। स्वतंत्रता के उलंघन को दिया गया है। जिसे पिछले कुछ वर्षों में पीछे धकेल दिया गया है।
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वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपना रास्ता केवल दो साल पहले नही बल्कि कई साल पहले ही खो दिया था। आजकल बहुत ज्यादा राजनीतिक मुददो को उठाया जा रहा है। स्वतंत्रता के मुददे को कालीन के नीचे धकेल दिया गया है। जैसा कि बंदी प्रत्यक्षिकरण याचिकाओं के सम्बन्ध में है एक वर्ष से अधिक समय से कश्मीर के मुद्दे पर हिरासत में लिए गए लोगों का मामला है। जिन्हें निवारक निरोध आदेश के तहत नही बल्कि धारा 144 के तहत शांति भंग करने के आरोपो में हिरासत में लिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इनका कोई नोटिस नही लिया।
जस्टिस लोकुर का विचार था की दो मंत्र है। जिसका उल्लेख जस्टिस सच्चर ने भी अपनी आत्मकथा में किया है। एक यह भारत का संविधान है जो सबसे ऊपर है। दूसरा यह है कि जजों का जनोन्मुख होना चाहिए ।