नागरिकों को अपने अधिकारों की जानकारी होना अनिवार्य ताकि वे उनका पालन करा सकें: जस्टिस गवई ने NALSA कार्यक्रम में कहा

शनिवार को नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) की तीन दशकों की यात्रा का जश्न मनाते हुए, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई ने नागरिकों के अपने संवैधानिक और वैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक होने के महत्व पर बल दिया। यह कार्यक्रम गुजरात के नर्मदा जिले स्थित एकता नगर में आयोजित हुआ, जहां जस्टिस गवई, जो NALSA के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं, ने देश के “अंतिम पंक्ति के नागरिकों” तक पहुंचने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए उठाए गए कदमों को रेखांकित किया।

जस्टिस गवई ने कहा कि अधिकारों का होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना भी जरूरी है, तभी वे उन्हें लागू करवा सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह सोच संविधान के अनुच्छेद 39 (क) में किए गए वादे — समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता — की मूल भावना को प्रतिबिंबित करती है। जस्टिस गवई ने बताया कि उनके नेतृत्व में NALSA ने जमीनी स्तर पर काम करते हुए देशभर में व्यापक स्तर पर जागरूकता फैलाने के प्रयास किए हैं।

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करीब साढ़े पांच महीने पहले कार्यभार संभालने के बाद से जस्टिस गवई की टीम ने डॉ. अंबेडकर द्वारा संविधान के माध्यम से कल्पना किए गए “निर्विरोध क्रांति” (bloodless revolution) को साकार करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। यह क्रांति न्याय को केवल सैद्धांतिक वादे तक सीमित नहीं रहने देने, बल्कि हर जरूरतमंद नागरिक के लिए इसे वास्तविकता बनाने का प्रयास है।

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उन्होंने जेलों में भीड़भाड़ कम करने को एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता बताया। जस्टिस गवई ने नागपुर केंद्रीय कारागार का दौरा करने के अनुभव साझा किए, जिसके बाद वृद्ध और गंभीर बीमारियों से ग्रसित कैदियों को जमानत दिलवाने के लिए विशेष प्रावधान किए गए। इसके अलावा, ऐसे विचाराधीन कैदियों की शीघ्र रिहाई सुनिश्चित करने के लिए NALSA ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) भी दायर की है।

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कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमिटी के अध्यक्ष जस्टिस सूर्यकांत ने भी संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि अब न्याय को दया (charity) नहीं बल्कि एक कानूनी अधिकार (legal right) के रूप में देखा जाता है। जस्टिस सूर्यकांत ने जोर देते हुए कहा कि किसी राष्ट्र में न्याय का माप उसकी भव्य अदालतों या कानूनों की संख्या से नहीं, बल्कि उसके सबसे कमजोर और हाशिये पर रहने वाले नागरिकों को मिलती सुरक्षा और निष्पक्षता से किया जाता है।

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