सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने बुधवार को एक बेहद भावनात्मक और दृढ़ वक्तव्य देते हुए कहा कि अपने करियर के अंतिम चरण में उन्हें वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी पड़ रही है, यह उनके लिए अत्यंत पीड़ादायक है। उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह बेहद कष्टदायक है कि अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर मुझे ऐसे कदम उठाने पड़ रहे हैं। लेकिन मैं गलत को अनदेखा नहीं कर सकती।”
यह टिप्पणी उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट ने न. ईश्वरनाथन बनाम राज्य मामले की सुनवाई के दौरान एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) पी. सोमा सुंदरम के खिलाफ कथित पेशेवर कदाचार के मामले में फैसला सुरक्षित रखा।
दरअसल, सुंदरम पर आरोप है कि उन्होंने एक आपराधिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बावजूद अपने मुवक्किल को आत्मसमर्पण नहीं करवाया और तथ्यों को छिपाकर दूसरी बार विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की। आरोपी आठ महीने तक आत्मसमर्पण से बचता रहा।

हालांकि, सुंदरम ने बिना शर्त माफ़ी मांगी, लेकिन जस्टिस त्रिवेदी ने इसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा, “माफ़ी मांग लेना सबसे आसान बहाना है। पिछली बार भी बिना शर्त माफ़ी मांगी गई थी,” साथ ही उन्होंने यह भी इंगित किया कि सुंदरम की दलीलें अस्पष्ट थीं और पहले दिए गए आदेश की जानकारी याचिकाकर्ता को कैसे दी गई, इस पर भी कोई स्पष्टता नहीं थी।
जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ में शामिल होते हुए कोर्ट ने पूछा, “आपका स्पष्टीकरण कहां है? जब दो सप्ताह में आत्मसमर्पण करना था तो आठ महीने तक क्यों नहीं किया? और आप दूसरी SLP दाखिल करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं?”
सुनवाई के दौरान बार के वरिष्ठ सदस्यों ने अदालत से नरमी बरतने की अपील की, लेकिन जस्टिस त्रिवेदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “आप सब मिलकर अदालत पर दबाव बनाते हैं कि आदेश न दिया जाए, और अदालतें दबाव में आ जाती हैं।” उनका यह कथन पेशेवर नैतिकता पर गहरी चिंता को दर्शाता है।
यह पहली बार नहीं है जब जस्टिस त्रिवेदी ने बार के स्तर में गिरावट को लेकर चिंता जताई हो। उन्होंने कहा, “मानक इतने गिर गए हैं। हमने SCAORA और SCBA से ठोस प्रस्ताव मांगे थे, लेकिन कोई भी संस्थान के लिए नहीं सोच रहा है।” उन्होंने यह भी बताया कि उनके पूर्व निर्देशों को भी नजरअंदाज किया गया।
इसके जवाब में, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्ष विपिन नायर ने कोर्ट को बताया कि AoR के लिए सप्ताहांत प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।
विवाद की जड़ एक आपराधिक मामला है, जिसमें SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धाराएं शामिल हैं। सुंदरम के मुवक्किल को ट्रायल कोर्ट ने तीन साल की सजा सुनाई थी, जिसे मद्रास हाईकोर्ट ने 2023 में बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती देते हुए मुवक्किल ने आत्मसमर्पण से छूट मांगी, जो खारिज कर दी गई। इसके बावजूद उसने आत्मसमर्पण नहीं किया और एक नई SLP दाखिल कर दी।
28 मार्च को कोर्ट ने सुंदरम की गैरमौजूदगी पर भी नाराज़गी जताई थी और उन्हें तमिलनाडु यात्रा के साक्ष्य के साथ पेश होने को कहा था। लेकिन जब उन्होंने केवल वापसी टिकट प्रस्तुत किया, तो जस्टिस त्रिवेदी फिर से असंतुष्ट दिखीं। उन्होंने कहा, “हमने यात्रा टिकट मांगा था। आप AoR हैं। सब आपके साथ हैं, फिर भी आप बुनियादी तथ्य नहीं समझा पा रहे हैं।”
सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ ग़ैर-जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया और उसे गिरफ्तार कर ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश करने को कहा, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेजा जाएगा।
जस्टिस बेला त्रिवेदी 9 जून को सेवानिवृत्त होने वाली हैं। उनके आज के कथन एक बार फिर इस बात को रेखांकित करते हैं कि वे वकालत पेशे की संस्थागत गरिमा और नैतिक मानकों को लेकर कितनी गंभीर हैं।