मद्रास हाईकोर्ट की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि पारिवारिक अदालत वैवाहिक संबंध बहाल करने की याचिका (Section 9, हिंदू विवाह अधिनियम) में न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) का आदेश नहीं दे सकती क्योंकि यह उस याचिका की वैधानिक सीमाओं से परे है। न्यायमूर्ति आर. सुरेश कुमार और न्यायमूर्ति डॉ. ए.डी. मारिया क्लीट की पीठ ने यह निर्णय पति द्वारा दायर दो अपीलों को स्वीकार करते हुए दिया, जिसमें पारिवारिक अदालत द्वारा पारित साझा आदेश को चुनौती दी गई थी।
पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ता पति और प्रतिवादी पत्नी, जिनकी यह दूसरी शादी थी, ने 6 जून 2011 को विवाह किया था। वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने के बाद पति ने H.M.O.P. No. 423 of 2013 के तहत हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत ‘क्रूरता’ के आधार पर तलाक की याचिका दायर की थी। पत्नी ने बाद में H.M.O.P. No. 1228 of 2014 के तहत वैवाहिक संबंध बहाल करने की याचिका दाखिल की।
कोयंबटूर की अतिरिक्त प्रधान पारिवारिक अदालत ने दोनों याचिकाओं को अस्वीकार करते हुए, अपनी ओर से धारा 13A के तहत दोनों पक्षों के लिए न्यायिक पृथक्करण का आदेश पारित किया था।
वकीलों की दलीलें:
अपीलकर्ता पति की ओर से अधिवक्ता श्री के.एस. कार्तिक राजा ने दलील दी कि पारिवारिक अदालत ने ऐसी राहत (न्यायिक पृथक्करण) दी, जिसकी मांग किसी पक्ष ने नहीं की थी, और जो वैवाहिक संबंध बहाली की याचिका के अधिकार-क्षेत्र से बाहर है।
पति ने मानसिक व शारीरिक क्रूरता के आरोप लगाए, जैसे कि अपमानजनक भाषा का प्रयोग, नाखूनों से चेहरे पर खरोंचें, वृद्ध माता-पिता के साथ मारपीट और झूठे आरोप। उन्होंने खरोंच के फोटो भी प्रस्तुत किए। हालांकि, पारिवारिक अदालत ने उनके माता-पिता की गवाही नहीं होने के आधार पर साक्ष्य को कमजोर माना।
पत्नी की ओर से अधिवक्ता श्री टी.के.एस. गांधी उपस्थित थे। पत्नी ने जिरह के दौरान स्वीकार किया कि उन्होंने पति पर दूसरा विवाह करने का जो आरोप लगाया था, वह केवल सुनी-सुनाई बात पर आधारित था। उन्होंने यह भी कहा कि वह बिना कोई विजिटेशन अधिकार मांगे, बेटी की कस्टडी पति को देने को तैयार हैं।
अदालत के अवलोकन:
उच्च न्यायालय ने कहा:
“हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जहां तलाक की याचिका में न्यायिक पृथक्करण का आदेश दिया जा सकता है, वहीं वैवाहिक संबंध बहाल करने की याचिका में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।”
पीठ ने यह भी कहा कि याचिका में मांग नहीं किए जाने पर न्यायिक पृथक्करण देना अधिकार-सीमा का अतिक्रमण है।
न्यायालय ने यह भी माना कि पति ने मानसिक क्रूरता सिद्ध की है, जिसमें पत्नी की बार-बार की गाली-गलौज, झूठे आरोप और पुलिस शिकायतें शामिल थीं।
कोर्ट ने Samar Ghosh v. Jaya Ghosh (2007) 4 SCC 511 और Shilpa Sailesh v. Varun Sreenivasan (2023) 4 SCC 555 मामलों का हवाला देते हुए कहा:
“जब वर्षों से अलगाव हो और पक्षकारों के बीच संबंध पूरी तरह टूट जाएं, तो वैवाहिक संबंधों को कानूनी रूप से बनाए रखना केवल एक भ्रम बनकर रह जाता है।”
अंतिम निर्णय:
उच्च न्यायालय ने दोनों अपीलों को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किए:
- 23 फरवरी 2021 को पारित पारिवारिक अदालत का साझा आदेश रद्द किया गया।
- H.M.O.P. No. 423 of 2013 में पति द्वारा दायर तलाक की याचिका स्वीकार की गई और विवाह (06.06.2011 को संपन्न) को धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत भंग किया गया।
- H.M.O.P. No. 1228 of 2014 में पत्नी द्वारा वैवाहिक संबंध बहाली की याचिका अस्वीकार कर दी गई।
- पत्नी और नाबालिग पुत्री को दिए गए ₹30,000 मासिक भरण-पोषण को बढ़ाकर ₹40,000 किया गया।