झारखंड में एक बड़ा कानूनी विरोध सामने आया है, जहां स्थानीय वकीलों ने झारखंड हाईकोर्ट में ‘बाहरी’ वकीलों की नियुक्ति का विरोध किया है। झारखंड हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद व रोंगोन मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाले न्यायालयों का बहिष्कार 6 मार्च से शुरू कर दिया है। यह बहिष्कार हाईकोर्ट कोलेजियम के निर्णयों के विरोध में किया जा रहा है, जो न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करता है।
विवाद की जड़ हाईकोर्ट कोलेजियम के हालिया फैसले में है, जिसमें कम से कम दो सुप्रीम कोर्ट वकीलों को झारखंड हाईकोर्ट का न्यायाधीश बनाने की सहमति दी गई है। यह निर्णय विवाद का कारण बना है क्योंकि यह एसोसिएशन के पहले से पारित प्रस्ताव का उल्लंघन करता प्रतीत होता है, जिसमें बाहरी नियुक्तियों का विरोध किया गया था। स्थानीय कानूनी समुदाय का कहना है कि नियुक्ति में झारखंड के अनुभवी अधिवक्ताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो क्षेत्र के विशिष्ट कानूनी और सामाजिक-आर्थिक संदर्भों से परिचित हैं।
एसोसिएशन ने 4 मार्च को एक पत्र जारी कर अपनी स्थिति स्पष्ट की:
“हमारी एसोसिएशन का हमेशा मानना रहा है कि झारखंड हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में हमारे बार के योग्य और अनुभवी नियमित प्रैक्टिशनर/अधिवक्ताओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो स्थानीय कानूनों, परंपराओं और झारखंड की सामाजिक-आर्थिक वास्तविकताओं की गहरी समझ रखते हैं। यह केवल क्षेत्रीय पसंद का मुद्दा नहीं है, बल्कि हमारे राज्य की अनूठी जरूरतों और चुनौतियों के प्रति संवेदनशील न्याय प्रणाली सुनिश्चित करने की हमारी प्रतिबद्धता का हिस्सा है।”

मामले को और गंभीर बनाते हुए, 10 मार्च को एसोसिएशन ने 15 वकीलों की सदस्यता निलंबित कर दी, जिन्होंने बहिष्कार में भाग नहीं लिया। साथ ही, उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। एसोसिएशन ने घोषणा की कि इस मुद्दे पर आगे की रणनीति 17 मार्च को होने वाली जनरल बॉडी मीटिंग में तय की जाएगी।
इसके अलावा, एसोसिएशन अपनी शिकायतों को राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने की योजना बना रही है। इसके लिए पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली जाएगा और भारत के राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश और कानून मंत्री से मुलाकात करने का प्रयास करेगा, बशर्ते वे इस बैठक के लिए उपलब्ध हों।