झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आलमगीर आलम द्वारा दायर जमानत याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। यह मामला उस हाई-प्रोफाइल टेंडर घोटाले से जुड़ा है जिसकी जांच प्रवर्तन निदेशालय (ED) कर रहा है।
न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद ने याचिकाकर्ता और ईडी दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा। ईडी इस मामले में ग्रामीण विकास विभाग के कार्यकाल के दौरान टेंडरों के आवंटन में कथित अनियमितताओं और धनशोधन की जांच कर रही है।
आलम, जो पाकुड़ से चार बार विधायक रह चुके हैं, 15 मई 2023 से न्यायिक हिरासत में हैं। उन्हें तब गिरफ्तार किया गया जब ईडी ने ग्रामीण विकास विभाग में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शुरू की। इस मामले की शुरुआत विभाग के मुख्य अभियंता वीरेन्द्र राम की गिरफ्तारी से हुई, जिन पर वित्तीय अनियमितताओं में अहम भूमिका निभाने का आरोप है।
ईडी के अनुसार, आलम ने कुछ चुनिंदा कंपनियों को टेंडर दिलाने में मदद की और इसके बदले मोटी कमीशन ली। जांच के दौरान दिल्ली, रांची, जमशेदपुर और पटना समेत कई शहरों में छापेमारी की गई। विभाग के वरिष्ठ अभियंताओं और आलम के निजी सचिव संजीव लाल के आवास पर भी तलाशी ली गई।
मामले का सबसे सनसनीखेज खुलासा उस समय हुआ जब संजीव लाल के घरेलू सहायक जहांगीर आलम के घर से ईडी को लगभग ₹32 करोड़ नकद बरामद हुए। ईडी ने आरोप लगाया है कि आलम ने अपने सहयोगियों और कर्मचारियों के माध्यम से अवैध रूप से प्राप्त धन को छुपाया और इस प्रकार टेंडर घोटाले से अर्जित धन को शुद्ध करने में उनकी सीधी भूमिका रही।
वीरेन्द्र राम की गिरफ्तारी के बाद आलम ने राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया और फिर मामले में कथित संलिप्तता के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया।
अब हाईकोर्ट से उम्मीद की जा रही है कि वह आने वाले दिनों में आलम की जमानत याचिका पर अपना निर्णय सुनाएगी।