झारखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य सरकार की वह अर्जी खारिज कर दी, जिसमें रेत घाटों के आवंटन पर लगी रोक हटाने की मांग की गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 (पीईएसए) के नियम अधिसूचित नहीं किए जाते, तब तक रेत घाटों का आवंटन नहीं होगा।
मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में राज्य प्रशासन पर 2024 के उस आदेश का पालन न करने का आरोप लगाया गया था, जिसमें पीईएसए नियम अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया गया था। इन नियमों के लागू होने के बाद ही अनुसूचित क्षेत्रों की ग्राम सभाओं को प्राकृतिक संसाधनों, विशेषकर रेत जैसे लघु खनिजों पर नियंत्रण का अधिकार मिल सकेगा।
राज्य की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि नियम बनाने की प्रक्रिया कैबिनेट स्तर पर होती है और उसका मसौदा पहले ही मुख्यमंत्री को भेजा जा चुका है। उन्होंने आग्रह किया कि रेत घाटों और खदानों की नीलामी की प्रक्रिया चल रही है, इसलिए रोक हटाई जाए।

लेकिन अदालत ने यह अनुरोध ठुकराते हुए कहा कि जब तक नियम अधिसूचित नहीं हो जाते, तब तक किसी भी तरह का आवंटन नहीं होगा। अदालत ने साथ ही याचिकाकर्ता से सरकार की दलीलों पर जवाब दाखिल करने को कहा।
आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर अवमानना याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार ने 2024 के आदेश के बावजूद पीईएसए नियम लागू नहीं किए हैं। सुनवाई के दौरान पंचायती राज सचिव मनोज कुमार भी अदालत में मौजूद रहे।
हाईकोर्ट ने इससे पहले 29 जुलाई, 2024 को सरकार को निर्देश दिया था कि रेत घाटों की नीलामी शुरू करने या लघु खनिजों के खनन प्रमाणपत्र जारी करने से पहले पीईएसए नियम लागू किए जाएं।
पीईएसए अधिनियम, 1996 अनुसूचित क्षेत्रों तक पंचायती राज व्यवस्था का विस्तार करता है और आदिवासी समुदायों को स्थानीय संसाधनों पर अधिकार प्रदान करता है। यह अधिनियम पूरे देश में लागू है, लेकिन झारखंड में अब तक नियम अधिसूचित न होने के कारण इसका क्रियान्वयन अधूरा है।
अदालत का यह फैसला आदिवासी स्वशासन को मजबूती देने वाला माना जा रहा है और राज्य सरकार की उन योजनाओं के लिए झटका है, जिनके तहत बिना ग्राम सभा की अनुमति के संसाधनों का आवंटन किया जाना था।