सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई कर्मचारी अपनी सेवा से इस्तीफा देता है, तो उसकी पिछली सेवा (Past Service) जब्त हो जाती है और वह केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के तहत पेंशन का हकदार नहीं रहता। हालांकि, कोर्ट ने यह भी व्यवस्था दी है कि इस्तीफे के बावजूद कर्मचारी ‘ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972’ के तहत ग्रेच्युटी (Gratuity) पाने का अधिकारी है, बशर्ते उसने पांच साल से कम की निरंतर सेवा न की हो।
जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने अशोक कुमार डबास (मृतक कानूनी वारिसों के माध्यम से) बनाम दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (2025 INSC 1404) के मामले में यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मृतक कर्मचारी के कानूनी वारिसों को ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट (छुट्टी के बदले पैसा) देने का आदेश दिया, लेकिन पेंशन की मांग को खारिज कर दिया।
कानूनी मुद्दा और फैसला
कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (DTC) का कोई कर्मचारी, जिसने लगभग 30 साल की सेवा के बाद इस्तीफा दे दिया हो, वह पेंशन, ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट जैसे सेवानिवृत्ति लाभों का हकदार है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1972 के नियमों के नियम 26 के तहत, इस्तीफे का परिणाम पिछली सेवा की जब्ती होता है, जिससे पेंशन का दावा समाप्त हो जाता है। इसके विपरीत, कोर्ट ने माना कि ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 4 के तहत, इस्तीफे के मामले में भी रोजगार की समाप्ति पर ग्रेच्युटी का भुगतान अनिवार्य है।
मामले की पृष्ठभूमि
मृतक अपीलकर्ता, अशोक कुमार डबास, को 1985 में DTC में कंडक्टर के पद पर नियुक्त किया गया था। 1992 में उन्होंने निगम द्वारा शुरू की गई नई पेंशन योजना का विकल्प चुना था। पारिवारिक परिस्थितियों का हवाला देते हुए उन्होंने 7 अगस्त 2014 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया, जिसे सक्षम प्राधिकारी ने 19 सितंबर 2014 को स्वीकार कर लिया।
बाद में, 13 अप्रैल 2015 को डबास ने अपना इस्तीफा वापस लेने का अनुरोध किया, जिसे निगम ने अस्वीकार कर दिया। जब उन्होंने 15 अक्टूबर 2015 को अपने सेवानिवृत्ति लाभों की मांग की, तो निगम ने सूचित किया कि इस्तीफे के कारण वह केवल भविष्य निधि (Provident Fund) के हकदार हैं, पेंशन के नहीं।
इस निर्णय को डबास ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट दोनों ने उनके दावों को खारिज कर दिया, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता का तर्क: अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि इस्तीफे का पत्र एक ऐसे कर्मचारी द्वारा लिखा गया था जो कानूनी भाषा का जानकार नहीं था, इसलिए उसे सख्ती से नहीं पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पेंशन कोई “ईनाम” (Bounty) नहीं है, बल्कि लंबी सेवा के बाद अर्जित की जाती है। चूंकि कर्मचारी ने 20 साल से अधिक सेवा दी थी, इसलिए उनके इस्तीफे को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (Voluntary Retirement) माना जाना चाहिए और पेंशन नियम 48-A के तहत लाभ दिया जाना चाहिए।
ग्रेच्युटी के संबंध में, उन्होंने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 4 का हवाला देते हुए कहा कि पांच साल की सेवा के बाद इस्तीफे के मामलों में भी ग्रेच्युटी देय होती है।
प्रतिवादी (DTC) का तर्क: DTC के वकील ने तर्क दिया कि 1972 के नियमों का नियम 26(1) पूरी तरह स्पष्ट है कि सेवा से इस्तीफा देने पर पिछली सेवा जब्त हो जाती है। इस्तीफे को स्वीकार किए जाने के बाद उसे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। उन्होंने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के BSES यमुना पावर लिमिटेड बनाम घनश्याम चंद शर्मा (2020) के फैसले का हवाला दिया।
इसके अलावा, प्रतिवादी ने कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड का भी उल्लेख किया, जिसमें कई बार निलंबन और दंड शामिल थे। हालांकि, लीव एनकैशमेंट के मामले में वकील ने निष्पक्ष रूप से स्वीकार किया कि देय राशि का भुगतान किया जाना चाहिए।
कोर्ट का विश्लेषण
पेंशन पर: कोर्ट ने केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 26(1) का विश्लेषण किया, जो कहता है:
“सेवा या पद से इस्तीफा, जब तक कि उसे नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा जनहित में वापस लेने की अनुमति न दी जाए, पिछली सेवा की जब्ती पर जोर देता है।”
पीठ ने पाया कि कर्मचारी का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया था और वापसी का अनुरोध खारिज कर दिया गया था। BSES यमुना पावर लिमिटेड मामले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि इस्तीफे को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मानना “इस्तीफे और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की अवधारणाओं के बीच के अंतर को धुंधला कर देगा और नियम 26 को निष्प्रभावी बना देगा।”
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:
“हमारी उपरोक्त चर्चा से, एकमात्र अपरिहार्य निष्कर्ष यह है कि कर्मचारी द्वारा इस्तीफा देने पर, उसकी पिछली सेवा जब्त हो गई। इसलिए, वह किसी भी पेंशन का हकदार नहीं होगा।”
ग्रेच्युटी पर: कोर्ट ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 4 का उल्लेख किया, जो यह प्रावधान करती है कि पांच साल की निरंतर सेवा के बाद रोजगार की समाप्ति पर कर्मचारी को ग्रेच्युटी देय होगी, चाहे वह “सेवानिवृत्ति हो या इस्तीफा”।
पीठ ने नोट किया कि प्रतिवादी यह साबित करने में विफल रहा कि उसे धारा 5 के तहत अधिनियम से कोई छूट प्राप्त है। कोर्ट ने कहा:
“एक बार जब प्रतिवादी द्वारा यह स्थापित नहीं किया जा सका कि 1972 का अधिनियम निगम पर लागू नहीं है, तो अपीलकर्ता के ग्रेच्युटी के दावे को खारिज नहीं किया जा सकता, भले ही उसने सेवा से इस्तीफा दे दिया हो।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया। पीठ ने DTC को निर्देश दिया कि वह मृतक अपीलकर्ता के कानूनी वारिसों को ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट का भुगतान करे।
- पेंशन: नियम 26 के तहत सेवा की जब्ती के कारण दावा खारिज।
- ग्रेच्युटी और लीव एनकैशमेंट: स्वीकृत।
- ब्याज: कोर्ट ने आदेश दिया कि देय राशि का भुगतान छह सप्ताह के भीतर इस्तीफे की तारीख से भुगतान तक 6% वार्षिक ब्याज के साथ किया जाए।

