इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ पीठ ने परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए एक पति को क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-A के तहत दर्ज आपराधिक मामले में बरी होने का यह अर्थ नहीं कि पति ने मानसिक उत्पीड़न नहीं झेला। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने परिवार न्यायालय, लखनऊ के प्रधान न्यायाधीश द्वारा दिए गए तलाक के फैसले को चुनौती देने वाली पत्नी की अपील खारिज कर दी।
मामले की पृष्ठभूमि
पत्नी ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 28 और परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 19 के तहत परिवार न्यायालय के 14 अक्टूबर 2022 के फैसले को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। पति ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ia) (क्रूरता) और 13(1)(ib) (परित्याग) के आधार पर तलाक की अर्जी दी थी।
पति ने आरोप लगाया कि शादी के शुरू से ही पत्नी का व्यवहार उनके और उनकी मां के प्रति असंवेदनशील था। उन्होंने पत्नी के फोन पर कथित रूप से किसी सहकर्मी के साथ अनुचित संदेश पाए, जिससे विवाहेतर संबंध की आशंका हुई। पति ने समझौते की कोशिश की, लेकिन हालात बिगड़ते गए और मामला पुलिस में पहुंच गया।

दूसरी ओर, पत्नी ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि उसे ससुराल में घरेलू हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उसने IPC की धारा 307, 354, 323, 504 और 506 के तहत एफआईआर दर्ज करवाई। हालांकि, कोर्ट ने इन आरोपों को निराधार पाते हुए खारिज कर दिया।
मुख्य कानूनी प्रश्न
- पूर्ववर्ती निर्णयों का प्रभाव (Res Judicata) – क्या पति द्वारा पहले 2017 और 2018 में दायर तलाक याचिकाओं के खारिज होने के कारण यह याचिका स्वीकार्य नहीं थी?
- क्रूरता के आधार पर तलाक – क्या पत्नी द्वारा झूठे आपराधिक मुकदमे दर्ज कराना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है?
- परित्याग – क्या पत्नी ने उचित कारण के बिना लगातार दो वर्षों तक पति को छोड़ दिया था, जिससे तलाक का आधार बनता है?
कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय
1. पूर्ववर्ती निर्णयों (Res Judicata) पर न्यायालय की राय
पत्नी ने तर्क दिया कि यह तलाक याचिका पहले के तलाक मामलों के खारिज होने के कारण स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा:
“Res Judicata लागू होने के लिए यह आवश्यक है कि पूर्व मामला मेरिट पर तय हुआ हो। यहां पहले के दोनों मामले तकनीकी आधारों पर खारिज किए गए थे, न कि मेरिट पर।”
कोर्ट ने Prem Kishore & Ors. बनाम Brahm Prakash & Ors. (2023 SCC OnLine SC 356) के मामले का हवाला देते हुए कहा कि:
“यदि कोई मामला न्यायालय की अधिकार सीमा, प्रक्रियात्मक दोष या तकनीकी आधार पर खारिज होता है, तो वह Res Judicata के तहत बाद की सुनवाई को प्रभावित नहीं करता।”
इसलिए, अदालत ने पाया कि Res Judicata का सिद्धांत इस मामले में लागू नहीं होता।
2. क्रूरता के आधार पर तलाक
कोर्ट ने पाया कि पत्नी ने पति और उसके परिवार के खिलाफ झूठे आपराधिक मामले दायर किए, जिन्हें बाद में खारिज कर दिया गया। इस पर न्यायालय ने K. Srinivas Rao बनाम D.A. Deepa (2013) और Raj Talreja बनाम Kavita Talreja (2017) मामलों का संदर्भ देते हुए कहा:
“झूठे आरोप लगाकर आपराधिक कार्यवाही शुरू करना और बदनाम करने की नीयत से पुलिस केस दर्ज कराना मानसिक क्रूरता के अंतर्गत आता है। भले ही पति को बरी कर दिया गया हो, लेकिन इस दौरान उसे मानसिक उत्पीड़न और सामाजिक अपमान झेलना पड़ा।”
कोर्ट ने Narasimha Sastry बनाम Suneela Rani (2020) के मामले का भी उल्लेख किया:
“जब कोई व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करता है और अंततः निर्दोष साबित होता है, तो उस मुकदमे के दौरान झेली गई पीड़ा को मानसिक क्रूरता माना जाता है।”
3. परित्याग (Desertion)
कोर्ट ने पाया कि पत्नी 2016 में ससुराल छोड़कर चली गई थी और तब से पति के साथ रहने का कोई प्रयास नहीं किया। इस पर न्यायालय ने Lachman Utamchand Kirpalani बनाम Meena (1964) के मामले का संदर्भ देते हुए कहा:
“परित्याग का अर्थ है कि किसी एक जीवनसाथी द्वारा बिना उचित कारण और बिना दूसरे की सहमति के स्थायी रूप से छोड़ देना।”
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“पत्नी द्वारा आठ वर्षों तक बिना किसी सुलह प्रयास के अलग रहना परित्याग की परिभाषा में आता है, जो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ib) के तहत तलाक का वैध आधार है।”
अंतिम निर्णय
कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज करते हुए परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा और कहा:
“यह विवाह अब पूर्ण रूप से टूट चुका है। पत्नी की हरकतों से पति मानसिक और भावनात्मक रूप से इतना आहत हो चुका है कि दांपत्य जीवन जारी रखना असंभव है। इसलिए परिवार न्यायालय द्वारा दिया गया तलाक का निर्णय सही है।”