इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि हिंदू देवी-देवताओं और धार्मिक ग्रंथों के अपमान से जुड़े मामलों को रोकने के लिए पहले से ही कानून मौजूद हैं। यदि याचिकाकर्ता इससे अधिक कड़े और प्रभावी कानून चाहते हैं, तो उन्हें अपनी शिकायत और प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखने चाहिए।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति इंद्रजीत शुक्ला की पीठ ने यह टिप्पणी शुक्रवार (5 दिसंबर) को हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस द्वारा दायर जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए की। याचिका में मांग की गई थी कि ऐसे कथित अपमानजनक घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को अधिक कठोर कानूनी उपाय करने के निर्देश दिए जाएं।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने दलील दी कि हिंदू देवी-देवताओं और धर्मग्रंथों के प्रति अनादर की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं और इस दिशा में कड़े कानूनों की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कुछ कानूनी प्रावधान पहले से मौजूद हैं, लेकिन वे पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं।
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि याचिका में किसी विशिष्ट घटना का उल्लेख नहीं किया गया है, बल्कि केवल उदाहरणों के आधार पर सरकारों को सख्त कदम उठाने का आग्रह किया गया है। अदालत ने कहा कि इस तरह की मांग नीति निर्धारण से संबंधित है और अदालत इससे संबंधित निर्देश तभी दे सकती है जब ठोस तथ्य प्रस्तुत हों।
पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता को लगता है कि अधिक सख्त कानून आवश्यक हैं, तो वह केंद्र और राज्य सरकारों के समक्ष प्रतिनिधित्व देकर अपनी बात रख सकती हैं।
अदालत ने इन टिप्पणियों के साथ याचिका का निस्तारण कर दिया।

