हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) के चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करने की अनुमति देने के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस फैसले में बीएफआई अध्यक्ष अजय सिंह द्वारा ठाकुर के नामांकन को खारिज करने के फैसले को पलट दिया गया है। न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने बीएफआई को नामांकन की समयसीमा बढ़ाने का आदेश दिया, ताकि ठाकुर बीएफआई की वार्षिक आम बैठक में हिमाचल प्रदेश मुक्केबाजी संघ (एचपीबीए) का प्रतिनिधित्व कर सकें।
न्यायालय का यह फैसला उस विवाद के बाद आया है, जिसमें बीएफआई अध्यक्ष अजय सिंह, जो स्पाइसजेट के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक भी हैं, ने 7 मार्च के नोटिस के आधार पर ठाकुर की उम्मीदवारी को अयोग्य घोषित कर दिया था। नोटिस में ठाकुर को अयोग्य घोषित किया गया क्योंकि वह एचपीबीए के निर्वाचित सदस्य नहीं थे, जो कि 28 मार्च को होने वाले बीएफआई के अध्यक्ष पद के चुनाव में उम्मीदवारी के लिए सिंह द्वारा उल्लिखित एक शर्त थी।
हालांकि, न्यायमूर्ति गोयल ने कहा कि सिंह द्वारा जारी किया गया नोटिस अनधिकृत था और इसमें कोई वैध शक्ति नहीं थी, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बीएफआई के अध्यक्ष के पास नामांकन और चुनाव से संबंधित मामलों पर एकतरफा निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, जिसे बीएफआई की आम परिषद द्वारा निर्धारित किया जाना चाहिए।

यह कानूनी विवाद दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा इसी तरह के एक मामले में हस्तक्षेप करने के तुरंत बाद उत्पन्न हुआ, जिसने 7 मार्च के उसी बीएफआई परिपत्र पर रोक लगा दी, जिसमें चुनावों में राज्य इकाइयों के विधिवत निर्वाचित सदस्यों का प्रतिनिधित्व प्रतिबंधित किया गया था। दिल्ली की अदालत ने चुनाव प्रक्रिया को निर्धारित समय पर आगे बढ़ने की अनुमति दी, लेकिन परिपत्र द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को चुनौती दी।
एचपीबीए का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव मुखर्जी ने तर्क दिया कि अध्यक्ष के रूप में अजय सिंह का कार्यकाल समाप्त हो गया है, जिससे चुनाव पात्रता पर उनके फैसले निरर्थक हो गए हैं। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सहमति जताते हुए कहा कि बीएफआई के नियमों में यह अनिवार्य नहीं है कि सदस्य संघों के प्रतिनिधि उन संघों के निर्वाचित पदाधिकारी होने चाहिए।
अदालत की जांच से पता चला कि बीएफआई की आम परिषद के पास हर चार साल में पदाधिकारियों और अन्य सदस्यों को चुनने का अधिकार है, जबकि नियमों में यह प्रावधान नहीं है कि केवल निर्वाचित राज्य इकाई के सदस्यों को ही मनोनीत किया जा सकता है। न्यायमूर्ति गोयल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नियमों की यह व्याख्या खेल संगठनों के भीतर निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और लोकतांत्रिक शासन के सिद्धांतों के अनुरूप है।