बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को प्रतिष्ठित गेटवे ऑफ इंडिया के पास यात्री जेट्टी और टर्मिनल सुविधाओं के निर्माण कार्य पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह परियोजना जनहित से जुड़ी है और इस स्तर पर हस्तक्षेप का कोई कारण नहीं बनता।
मुख्य न्यायाधीश आलोक अराध्ये और न्यायमूर्ति एम.एस. कर्णिक की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि निर्माण कार्य याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगा। यह याचिका क्लीन एंड हेरिटेज कोलाबा रेज़िडेंट्स एसोसिएशन (CHCRA) द्वारा दायर की गई है, जो इस परियोजना का विरोध कर रही है।
पीठ ने कहा, “हम इस स्तर पर कार्य पर रोक लगाने के इच्छुक नहीं हैं। यह एक सार्वजनिक परियोजना है।”
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई 20 जून को तय की है।
सुनवाई के दौरान, एडवोकेट जनरल बीरेन्द्र साराफ ने अदालत को आश्वासन दिया कि गेटवे ऑफ इंडिया के पास स्थित वह दीवार, जिसे परियोजना के तहत तोड़ा जाना है, अगली सुनवाई तक यथावत बनी रहेगी, जैसा कि सरकार ने पहले भी वचन दिया था।
हालांकि, CHCRA की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अस्पी चिनॉय ने एक आवेदन में आरोप लगाया कि सरकार ने आश्वासन का उल्लंघन किया है और साइट पर पाइलिंग कार्य शुरू कर दिया है। उनका तर्क था कि एक बार पाइल्स स्थापित हो जाने के बाद उन्हें हटाना लगभग असंभव होगा, जिससे याचिका निष्प्रभावी हो जाएगी।
चिनॉय ने दलील दी कि यदि पाइलिंग जारी रही तो परियोजना एक ‘fait accompli’ यानी पूर्व-निर्धारित वास्तविकता बन जाएगी, जो न्यायिक समीक्षा को निरर्थक बना देगी।
जवाब में साराफ ने कहा कि निविदा प्रक्रिया जुलाई 2024 में शुरू हो चुकी थी और स्थानीय निवासी यह जानते थे कि पाइलिंग निर्माण का आवश्यक हिस्सा है। उन्होंने दोहराया कि दीवार अगली सुनवाई तक नहीं तोड़ी जाएगी।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने फिलहाल किसी हस्तक्षेप से इनकार किया और याचिकाकर्ता की आपत्तियों को रिकॉर्ड में लिया।
अदालत के अंतरिम आदेश के तहत सार्वजनिक अवसंरचना से जुड़ा यह कार्य जारी रह सकेगा, जबकि कुछ विरासत संरचनाएं अगले आदेश तक सुरक्षित रहेंगी।