बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि पर्यावरण-अनुकूल गणपति प्रतिमाओं का प्राकृतिक जलस्रोतों में विसर्जन नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत अधिकार सामुदायिक अधिकारों, विशेषकर स्वच्छ जल के अधिकार, से ऊपर नहीं हो सकते।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश श्री चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति आरती साठे की खंडपीठ बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) की उस गाइडलाइन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें छह फीट से छोटी प्रतिमाओं का विसर्जन केवल कृत्रिम तालाबों में करने का निर्देश दिया गया है।
पीठ ने कहा कि स्वच्छ हवा और स्वच्छ पानी का अधिकार अब हर नागरिक का मौलिक अधिकार बन चुका है।

“स्वच्छ हवा और पानी का अधिकार मौलिक अधिकार का दर्जा प्राप्त कर चुका है। जब अदालत के समक्ष व्यक्तिगत अधिकारों और नागरिकों के सामुदायिक अधिकारों के बीच टकराव का प्रश्न आता है, तो व्यक्तियों को होने वाली कठिनाई बड़े मुद्दों पर हावी नहीं हो सकती,” अदालत ने कहा।
यह याचिका संजय शिर्के द्वारा दायर की गई थी, जिसमें दक्षिण मुंबई स्थित ऐतिहासिक बांगंगा तालाब सहित प्राकृतिक जलस्रोतों में पर्यावरण-अनुकूल प्रतिमाओं के विसर्जन की अनुमति मांगी गई थी। उनका तर्क था कि अतीत में यहां विसर्जन की अनुमति दी जाती रही है।
महाधिवक्ता बीरेन्द्र साराफ ने इसका विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को बांगंगा तालाब में प्रतिमा विसर्जन का कोई मौलिक अधिकार नहीं है, क्योंकि यह संरक्षित स्मारक है और प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल तथा अवशेष अधिनियम के अंतर्गत आता है।
हाईकोर्ट ने बीएमसी की मानक कार्यप्रणाली (SOP) और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (MPCB) की अधिसूचना को सही ठहराया, जिसमें बांगंगा तालाब में विसर्जन पर रोक लगाई गई है। अदालत ने कहा कि यह कदम जनहित में उठाया गया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पहले ही प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) से बनी प्रतिमाओं के प्राकृतिक जलस्रोतों में विसर्जन पर रोक लगा चुका है। इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने आदेश दिया था कि छह फीट से छोटी प्रतिमाओं का विसर्जन कृत्रिम तालाबों में और उससे बड़ी प्रतिमाओं का प्राकृतिक जलस्रोतों में किया जा सकता है।