हरियाणा सरकार और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को पुरानी पेंशन योजना लागू करने का आदेश; मनमानी कार्रवाई पर ₹5 लाख का जुर्माना

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में हरियाणा सरकार और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय (केयू) को निर्देश दिया है कि वे उन शिक्षकों को पुरानी पेंशन योजना (OPS) का लाभ दें, जिन्हें नई पेंशन योजना (NPS) लागू होने से पहले विज्ञापित पदों पर नियुक्त किया गया था। कोर्ट ने मनमाने और तर्कहीन ढंग से लाभ न देने को अनुचित ठहराते हुए ₹5 लाख की लागत भी आरोपित की है।

न्यायमूर्ति त्रिभुवन दहिया की एकल पीठ ने निर्णय में कहा कि मई 2006 से नवंबर 2006 के बीच नियुक्त हुए वे कर्मचारी, जिनकी नियुक्ति 2005–2006 की विज्ञप्तियों के आधार पर हुई थी—जब केयू कर्मचारी पेंशन योजना, 1997 प्रभावी थी—उन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मई 2023 की सरकारी अधिसूचना, जिसमें ऐसे कर्मचारियों को OPS में शामिल करने की अनुमति दी गई थी, को न लागू करना सरकार की मनमानी और अधिकारों का दुरुपयोग है।

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मामला जुलाई 2023 की एक सरकारी संचार से जुड़ा है, जिसमें विश्वविद्यालयों को मई 2023 के सर्कुलर को लागू न करने का निर्देश दिया गया था। इस सर्कुलर में केंद्र सरकार की नीति को अपनाते हुए कहा गया था कि 1 जनवरी 2006 (NPS लागू होने की तारीख) से पहले विज्ञापित पदों पर नियुक्त कर्मचारियों को OPS का लाभ दिया जाए।

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सरकार की इस यू-टर्न पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा:
“बिना किसी तर्क के ऐसा निर्णय सरकार की हठधर्मिता दर्शाता है, जो निंदनीय है और स्वीकार नहीं किया जा सकता। संविधानिक ढांचे में कोई भी कार्यपालिका स्वयं को ऐसा पूर्णाधिकार नहीं दे सकती कि वह जब चाहे तब कार्य करे या न करे, वह भी बिना किसी न्यायसंगत कारण के।”

कोर्ट ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उसने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के अपने कर्तव्य को निभाने में चुप्पी साध रखी थी।

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राज्य सरकार की यह दलील कि विश्वविद्यालय ने OPS लागू करने का कोई प्रस्ताव नहीं भेजा, कोर्ट ने खारिज कर दी और कहा कि सरकार जब सुविधाजनक होता है तब इन कर्मचारियों को अपने अधीन मानती है, और जब नहीं होता तो उन्हें अस्वीकार कर देती है।

कोर्ट ने सरकार और विश्वविद्यालय को सभी जरूरी औपचारिकताएं दो हफ्तों में पूरी करने और इसके बाद आठ हफ्तों के भीतर याचिकाकर्ताओं को OPS का लाभ देने का आदेश दिया है। ₹5 लाख की मुकदमा लागत में से ₹4 लाख राज्य सरकार और ₹1 लाख विश्वविद्यालय को अदा करने होंगे।

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