पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार की वर्ष 2019 की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया है, जिसके तहत ग्रुप B और C की सरकारी भर्तियों में सामाजिक-आर्थिक आधार पर उम्मीदवारों को अधिकतम 10 अतिरिक्त अंक दिए जा रहे थे।
न्यायमूर्ति संजीव प्रकाश शर्मा और न्यायमूर्ति मीनाक्षी आई मेहता की खंडपीठ ने कहा कि इस अधिसूचना के माध्यम से “उम्मीदवारों का एक कृत्रिम वर्ग” बनाया गया, जिससे संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है।
“राज्य द्वारा केवल अनुच्छेद 15 और 16 के तहत ही आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है, इसके अतिरिक्त कोई अन्य आरक्षण नहीं दिया जा सकता,” कोर्ट ने कहा।

अब तीन महीने में प्रकाशित करनी होगी संशोधित मेरिट सूची
यह फैसला 2021 में दायर कई याचिकाओं पर सुनाया गया, जिनमें विभिन्न भर्तियों को चुनौती दी गई थी। इनमें दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम (DHBVN) में जूनियर सिस्टम इंजीनियर के 146 पदों की भर्ती भी शामिल थी।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार सभी प्रभावित भर्तियों के लिए संशोधित परिणाम प्रकाशित करे। जिन उम्मीदवारों की मेरिट संशोधित सूची में बनी रहेगी, वे अपने पदों पर बने रहेंगे।
हालांकि, कोर्ट ने सहानुभूतिपूर्वक निर्णय लेते हुए उन उम्मीदवारों को राहत दी जिन्हें उक्त नीति के तहत नियुक्ति मिल चुकी है, लेकिन वे संशोधित मेरिट में नहीं आएंगे। ऐसे उम्मीदवारों को:
- भविष्य की रिक्तियों में समायोजित किया जाएगा,
- अस्थायी (ad hoc) आधार पर काम करने की अनुमति दी जाएगी जब तक स्थायी नियुक्ति नहीं होती,
- वरिष्ठता की गणना भविष्य में उपलब्ध पदों की नियुक्ति की तिथि से मानी जाएगी।
कोर्ट ने कहा कि “ऐसे उम्मीदवारों को उनके किसी दोष के बिना बाहर करना न्यायसंगत नहीं होगा,” और इसलिए एक अपवाद के रूप में यह राहत दी जा रही है।
2019 की अधिसूचना और सरकार का पक्ष
जून 2019 की अधिसूचना के तहत ग्रुप B व C पदों की भर्तियों में लिखित परीक्षा के लिए 90 अंक निर्धारित थे और शेष 10 अंक सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के आधार पर दिए जाने थे। इनमें निम्न श्रेणियां शामिल थीं:
- जिनके परिवार में कोई भी नियमित सरकारी कर्मचारी न हो (अधिकतम 5 अंक),
- विधवाएं या ऐसे उम्मीदवार जिनके माता-पिता की मृत्यु 42 वर्ष की आयु से पहले हो गई हो या जब वे 15 वर्ष की आयु तक न पहुंचे हों (5 अंक),
- घुमंतू जनजातियों को (5 अंक)।
राज्य सरकार ने इस नीति का बचाव करते हुए कहा था कि इसका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को लाभ देना है और यह व्यापक जनहित में है। सरकार ने तर्क दिया था कि “व्यक्तिगत हित की तुलना में सामाजिक हित अधिक महत्वपूर्ण है।”
व्यापक असर
इस फैसले का असर राज्य सरकार की कई पुरानी और वर्तमान भर्तियों पर पड़ेगा। कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार यह निर्णय इस बात को स्पष्ट करता है कि राज्य सरकारें संविधान के दायरे में रहते हुए ही कोई भी आरक्षण या वरीयता नीति बना सकती हैं।
अब हरियाणा सरकार को तीन महीने के भीतर कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए संशोधित परिणाम प्रकाशित करने होंगे।