पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने गुरुग्राम निवासी विकास तोमर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है। तोमर पर आरोप है कि उसने एक मस्जिद की छत से राष्ट्रीय ध्वज को हटाकर वहां भगवा झंडा फहराया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का कथित आचरण “गंभीर सांप्रदायिक और संवैधानिक प्रभाव” वाला है।
न्यायमूर्ति मनीषा बत्रा ने याचिका खारिज करते हुए कहा, “याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप न तो अस्पष्ट हैं और न ही सामान्य, बल्कि वे विशेष रूप से प्रारंभिक जांच में सामने आए साक्ष्यों से पुष्ट हैं, जिनमें सह-आरोपी के साथ बातचीत की रिकॉर्डिंग भी शामिल है।”
अदालत ने कहा कि इस अपराध की गंभीरता और उसके संभावित प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे सार्वजनिक शांति और सांप्रदायिक सौहार्द प्रभावित हो सकता है।

विकास तोमर ने 7 जुलाई को गुरुग्राम के बिलासपुर थाने में दर्ज एफआईआर के खिलाफ अग्रिम जमानत की मांग की थी। उस पर भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 299, 3(5), 61(2), और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत मामला दर्ज किया गया है। याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा कि उसे झूठा फंसाया गया है और उसका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है।
मामला उस घटना से जुड़ा है, जिसमें पुलिस को सूचना मिली थी कि बिलासपुर इलाके की एक मस्जिद पर फहराया गया राष्ट्रीय ध्वज कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा हटाकर उसकी जगह भगवा झंडा फहरा दिया गया है। शिकायतकर्ता ने तीन लोगों के नाम के साथ ऑडियो और वीडियो साक्ष्य भी पुलिस को सौंपे थे।
जांच के दौरान विकास तोमर की भूमिका सामने आई। राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि आरोपी ने क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव फैलाने की नीयत से गांव उटन की मस्जिद से राष्ट्रीय ध्वज हटवाकर वहां भगवा झंडा फहरवाया, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे। मामले की गहराई से जांच के लिए आरोपी की हिरासत आवश्यक है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कोई असाधारण या विशेष कारण नहीं बताया है, जिससे उसके पक्ष में राहत दी जा सके। “गंभीर सांप्रदायिक और संवैधानिक प्रभाव को देखते हुए… हिरासत में पूछताछ ज्यादा प्रभावी होती है और इससे कई अहम जानकारियां सामने लाई जा सकती हैं,” अदालत ने कहा।