गुजरात हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में 23 साल पुराने विवाह-विच्छेद को बरकरार रखते हुए उस वैवाहिक विवाद का अंत कर दिया, जिसकी शुरुआत रसोई से हुई थी और जिसका केंद्र था पत्नी द्वारा धार्मिक मान्यता के चलते प्याज और लहसुन का सेवन न करना।
न्यायमूर्ति संगीता विशेन और न्यायमूर्ति निशा ठाकोर की खंडपीठ ने पत्नी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि वह अब विवाह-विच्छेद का विरोध नहीं कर रही हैं, जैसा कि 27 नवंबर के आदेश में दर्ज है।
अदालत ने कहा कि पति-पत्नी के बीच लम्बे समय से चले आ रहे मतभेदों का “ट्रिगर पॉइंट” पत्नी द्वारा प्याज और लहसुन का सेवन न करना था। पत्नी ने कहा कि वह स्वामिनारायण संप्रदाय का पालन करती हैं, जिसके अनुयायी प्याज-लहसुन नहीं खाते। 2002 में विवाह के बाद पति की मां उनके लिए अलग से बिना प्याज-लहसुन का भोजन बनाती थीं, जबकि परिवार के अन्य सदस्य सामान्य भोजन करते थे।
अदालत ने टिप्पणी की, “धर्म का पालन और प्याज तथा लहसुन के सेवन का मुद्दा, दोनों पक्षों के बीच मतभेदों का ट्रिगर पॉइंट रहा।”
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्नी ने तलाक का विरोध नहीं किया और कहा कि उसकी चिंता भरण-पोषण को लेकर है।
आदेश में दर्ज किया गया, “पत्नी विवाह-विच्छेद का विरोध नहीं कर रही थीं, बल्कि चिंता निर्धारित अलिमनी को लेकर है।”
मामला वर्षों पुराना है। पति ने पहले महिला पुलिस स्टेशन में शिकायत दी थी कि पत्नी उन्हें “प्रताड़ित और परेशान” करती हैं। 2007 में पत्नी बच्चे के साथ ससुराल छोड़कर चली गईं। 2013 में पति ने अहमदाबाद फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की, आरोप लगाया कि वह “क्रूरता और परित्याग” का शिकार हुए। मई 2024 में फैमिली कोर्ट ने तलाक मंजूर कर दिया।
सुनवाई के दौरान पत्नी ने कहा कि फैमिली कोर्ट के निर्देश के बावजूद पिछले 18 महीनों से उसे भरण-पोषण की राशि नहीं मिली। उसके वकील ने बताया कि कुल बकाया राशि ₹13,02,000 है, जिसमें से उसे अंतरिम रूप से ₹2,72,000 मिले हैं, जबकि ₹4,27,000 पति ने मुकदमे के दौरान जमा कराए थे।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि जमा राशि सत्यापन के बाद पत्नी को हस्तांतरित की जाए और शेष राशि पति फैमिली कोर्ट में जमा कराएं, जिसे बाद में पत्नी के बैंक खाते में भेजा जाएगा।
इन निर्देशों के साथ हाईकोर्ट ने तलाक को बरकरार रखते हुए उस लंबे वैवाहिक विवाद को समाप्त कर दिया, जिसकी शुरुआत रसोई के एक dietary चयन से होकर 23 साल पुराने विवाह के अंत तक पहुंची।

