परपोते-परपोतियाँ स्वतंत्रता सेनानी कोटे के लिए पात्र नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट 

इलाहाबाद हाईकोर्ट, लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि स्वतंत्रता सेनानियों के पर-प्रपौत्री “स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित” की श्रेणी के तहत आरक्षण लाभ पाने के हकदार नहीं हैं, जैसा कि उत्तर प्रदेश सार्वजनिक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1993 में परिभाषित किया गया है। यह निर्णय जस्टिस आलोक माथुर द्वारा अवनि पांडे बनाम चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय, लखनऊ और अन्य (रिट-सी संख्या 7708/2024) मामले में सुनाया गया।

मामले का पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता, अवनि पांडे, ने NEET-UG 2024 के माध्यम से MBBS पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए “स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित” श्रेणी के तहत आरक्षण लाभ की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उत्तर प्रदेश की निवासी अवनि ने तर्क दिया कि उनके परदादा-दादी बिहार राज्य के निवासी थे और उन्हें बिहार राज्य के सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता दी गई थी। NEET-UG परीक्षा में 720 में से 388 अंक प्राप्त करने के बावजूद, उनके दावे को अस्वीकार किए जाने के कारण उन्हें काउंसलिंग प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर नहीं मिला।

कानूनी मुद्दे:

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कोर्ट के समक्ष दो मुख्य कानूनी मुद्दे थे:

1. स्वतंत्रता सेनानी कोटे के लिए पर-प्रपौत्री की पात्रता: क्या स्वतंत्रता सेनानियों के पर-प्रपौत्री “स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रित” के रूप में आरक्षण लाभ के पात्र हैं, जैसा कि उत्तर प्रदेश सार्वजनिक सेवा (शारीरिक रूप से विकलांग, स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों और पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1993 की धारा 2(b) में परिभाषित है?

2. निवास और आरक्षण लाभ: क्या उत्तर प्रदेश में निवास करने वाला कोई व्यक्ति, जिसके पूर्वज राज्य के बाहर के निवासी थे, स्वतंत्रता सेनानी आश्रित कोटे का दावा कर सकता है?

पक्षकारों के तर्क:

याचिकाकर्ता के वकील, राजेश कुमार सिंह ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के परदादा-दादी स्वतंत्रता सेनानी थे और अन्य राज्यों से आए आश्रितों को बाहर करने वाले दिशानिर्देश भेदभावपूर्ण हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, और 16 का उल्लंघन करते हैं। उन्होंने अनमोल दीप बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में एक खंडपीठ के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश के बाहर के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को राज्य के भीतर लाभ प्राप्त करने की अनुमति दी गई थी।

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प्रतिवादियों, जिनका प्रतिनिधित्व सैयद मोहम्मद हैदर रिज़वी और सरकारी वकील द्वारा किया गया, ने यह तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 2(b) के तहत परिभाषित “आश्रितों” की श्रेणी में पर-प्रपौत्री शामिल नहीं हैं, इसलिए याचिकाकर्ता आरक्षण की हकदार नहीं है।

कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय:

न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने सभी तर्कों पर विचार करने के बाद कहा:

“अधिनियम की धारा 2(b) के तहत स्वतंत्रता सेनानी के संदर्भ में ‘आश्रित’ की परिभाषा व्यापक है और इसमें पर-प्रपौत्री शामिल नहीं हैं।”

कोर्ट ने कृष्ण नंद राय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (रिट-सी संख्या 13427/2020) के अपने पिछले फैसले का भी संदर्भ दिया, जिसमें यह कहा गया था कि स्वतंत्रता सेनानियों के पर-प्रपौत्री “आश्रित” की परिभाषा के दायरे में नहीं आते हैं। न्यायमूर्ति माथुर ने नोट किया:

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“कोई भी स्पष्टीकरण अंतिम परिणाम को नहीं बदल सकता… क्योंकि यह एक पूर्व-निर्धारित स्थिति है। याचिकाकर्ता किसी भी तरह से इस स्वीकृत तथ्य को नकार नहीं सकती कि ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की पर-प्रपौत्री होने के नाते, वह ‘स्वतंत्रता सेनानी के आश्रित’ की परिभाषा से बाहर है।”

नतीजतन, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता, जो स्वतंत्रता सेनानियों की पर-प्रपौत्री है, अधिनियम के तहत आश्रित नहीं मानी जा सकती। इस आधार पर रिट याचिका खारिज कर दी गई।

मामले का विवरण:

– शीर्षक: अवनि पांडे बनाम चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय, लखनऊ और अन्य  

– मामला संख्या: रिट – सी संख्या 7708/2024  

– पीठ: न्यायमूर्ति आलोक माथुर  

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