नई दिल्ली—- सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाते हुए कहा है कि सम्पूर्ण भारत वर्ष में कहीं भी केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारी को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नही किया जा सकता है। उस आदेश का मुख्य उद्देश्य चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है। पीठ ने यह फैसला गोवा सरकार के सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार देने के मामले में सुनाया है।
कोर्ट के जस्टिस एफ नरीमन और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने संविधान के आर्टिकल 142 और 144 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह निर्देश जारी किया है। आर्टिकल 142 के आधार पर सुप्रीम कोर्ट अदालत को पूर्ण न्याय करने के लिए निर्देश जारी करने का अधिकार है। किन्तु आर्टिकल 144 सभी अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट की सहायता करने में बाध्य करता है।
पीठ ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता से समझौता नही किया जा सकता है। साथ ही पीठ ने कहा कि सरकार में किसी भी पद पर नियुक्त शख्स को राज्य चुनाव आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार सौंपना संविधान का मखौल उड़ाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयुक्तों को स्वतंत्र व्यक्ति होना चाहिए। और ऐसे भी व्यक्ति को जो केंद्र या किसी राज्य सरकार के अधीन कार्यरत या किसी लाभ का पद धारण करता है उसे चुनाव आयुक्त नियुक्त नही किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तब सुनाया जब कोर्ट ने गोवा सरकार को राज्य में नगरपालिका परिषद चुनाव कराने के लिए अपने कानून सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त नियुक्त करने के लिए रोक दिया। गोवा में कानून सचिव को राज्य चुनाव आयुक्त के रूप में अतिरिक्त प्रभार दिया गया था।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह परेशान करने वाली तस्वीर है कि एक सरकारी कर्मचारी जो सरकार के साथ रोजगार में था। गोवा में चुनाव आयोग का प्रभारी है। कोर्ट ने आदेश दिया कि इसके बाद ऐसे किसी व्यक्ति को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा चुनाव आयोग के रूप में नियुक्त नही किया जाएगा।