घरेलू हिंसा के मामलों में पति के रिश्तेदारों को गलत तरीके से फंसाना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में घरेलू हिंसा के एक मामले में पति के कुछ पारिवारिक सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया, जबकि पति और सास के खिलाफ मामले को बरकरार रखा। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि साझा घर के ठोस सबूत के बिना दूर के रिश्तेदारों को फंसाना कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला पीड़ित पक्ष और उसके पति के बीच वैवाहिक कलह से उत्पन्न हुआ। उनके तनावपूर्ण संबंधों के बाद, पीड़ित पक्ष ने पति और उसके परिवार के सदस्यों, जिसमें उसकी मां और विवाहित बहनें शामिल हैं, के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत मामला दर्ज कराया।

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सास और पांच अन्य रिश्तेदारों सहित आवेदकों ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनभद्र के समक्ष लंबित मामले में कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया।

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शामिल कानूनी मुद्दे

1. घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2(क्यू) के तहत ‘प्रतिवादी’ की परिभाषा: आवेदकों ने तर्क दिया कि कुछ परिवार के सदस्य, अर्थात् विवाहित बहनें और उनके पति-पत्नी, साझा घर में नहीं रहते थे और इसलिए, उन्हें घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत प्रतिवादी के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।

2. धारा 2(एफ) के तहत ‘घरेलू संबंध’ का दायरा: न्यायालय ने जांच की कि क्या सभी आरोपी पक्ष पीड़ित महिला के साथ घरेलू संबंध में थे।

3. घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग: न्यायालय ने बिना किसी ठोस सबूत के ऐसे मामलों में कई परिवार के सदस्यों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति को स्वीकार किया।

हाईकोर्ट द्वारा अवलोकन और निर्णय

न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 2(क्यू) के तहत, केवल वे लोग ही प्रतिवादी के रूप में वर्गीकृत किए जा सकते हैं जो पीड़ित महिला के साथ साझा घर में रहे हों।

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हीरल पी. हरसोरा एवं अन्य बनाम कुसुम नरोत्तमदास हरसोरा एवं अन्य (2016) 10 एससीसी 165 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए, हाईकोर्ट ने दोहराया कि ‘प्रतिवादी’ की परिभाषा में केवल घरेलू संबंध में रहने वाले वे लोग शामिल हैं जिन्होंने घरेलू हिंसा का कृत्य किया है।

न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की:

“इस न्यायालय को ऐसे कई मामले मिले, जहाँ पति या घरेलू संबंध में रहने वाले व्यक्ति के परिवार को परेशान करने के लिए, पीड़ित पक्ष दूसरे पक्ष के उन रिश्तेदारों को फंसाता था, जो पीड़ित व्यक्ति के साथ साझा घर में रहते भी नहीं हैं या रह चुके हैं।”

न्यायालय ने माना कि आवेदक, विवाहित बहनें और उनके पति-पत्नी अलग-अलग रहने के कारण अधिनियम के तहत प्रतिवादी नहीं माने जा सकते। नतीजतन, कार्यवाही में उनकी भागीदारी दुर्भावनापूर्ण और अदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग मानी गई। हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ मामला रद्द कर दिया।

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हालांकि, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सास और पति के खिलाफ कार्यवाही जारी रहेगी, क्योंकि दहेज से संबंधित उत्पीड़न सहित घरेलू हिंसा के विशिष्ट आरोप थे।

अंतिम निर्देश

हाईकोर्ट ने निम्नलिखित आदेश जारी किए:

– कुछ पारिवारिक सदस्यों के विरुद्ध कार्यवाही रद्द कर दी गई।

– पति और सास के विरुद्ध मुकदमा जारी रखने की अनुमति दी गई।

– ट्रायल कोर्ट को मामले में तेजी लाने और 60 दिनों के भीतर इसे समाप्त करने का निर्देश दिया गया।

– रजिस्ट्रार (अनुपालन) को संबंधित न्यायालय को आदेश की शीघ्र सूचना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया।

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