राजधानी भोपाल की जिला अदालत ने एक फर्जी वकील रविन्द्र कुमार गुप्ता को 18 वर्षों तक अवैध रूप से वकालत करने के मामले में तीन साल की सजा सुनाई है। न्यायालय ने उस पर ₹4,000 का जुर्माना भी लगाया है।
यह फैसला पच्चीसवें अपर सत्र न्यायाधीश पहलाज सिंह कैमेथिया की अदालत ने सुनाया। मामले में अभियोजन की ओर से लोक अभियोजक सतीश समैया ने पक्ष रखा।
मामले की शुरुआत अधिवक्ता राजेश व्यास की शिकायत से हुई, जिन्होंने थाना एमपी नगर में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। शिकायत में कहा गया कि रविन्द्र गुप्ता ने म.प्र. राज्य अधिवक्ता परिषद का फर्जी सनद प्रमाण पत्र तैयार किया और वर्ष 2013 में भोपाल जिला अभिभाषक संघ की सदस्यता ले ली। उसे सदस्यता क्रमांक 4008 दिया गया।

जांच में यह भी सामने आया कि उसने 10 मई 2016 को मप्र बार काउंसिल का एक और फर्जी प्रमाण पत्र तैयार किया, जिसका क्रमांक 1629/1999 और दिनांक 17 अगस्त 1999 बताया गया। परंतु जांच में पाया गया कि यह प्रमाण पत्र असल में उज्जैन के अधिवक्ता प्रदीप कुमार शर्मा के नाम पर दर्ज है।
इसके बाद आरोपी को असली दस्तावेज पेश करने के लिए नोटिस जारी किया गया। उसने 3 अप्रैल 2017 को जो प्रमाण पत्र पेश किया, वह भी फर्जी पाया गया। जांच के बाद यह स्पष्ट हो गया कि रविन्द्र कुमार गुप्ता अधिवक्ता नहीं है और वर्ष 1999 से वह अदालत, पुलिस और पक्षकारों को धोखा दे रहा था।
गुप्ता ने न सिर्फ काला कोट पहनकर अदालत में पेशियां कीं, बल्कि लोगों से अवैध रूप से फीस भी वसूली और उन्हें कानूनी सलाह भी दी, जिसके लिए उसके पास कोई वैधानिक अधिकार नहीं था।
उसके खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 419 (छल से व्यक्तित्व अपनाना), 420 (धोखाधड़ी), 467 (महत्वपूर्ण दस्तावेज की जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), और 471 (जाली दस्तावेज को असली के रूप में उपयोग करना) के तहत अपराध दर्ज किया गया था। विवेचना में आरोप सिद्ध हुए, जिसके बाद उसे दोषी ठहराकर सजा सुनाई गई।