सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फर्जी अंतरिम आदेश बनाकर प्रस्तुत करने के मामले में तीन व्यक्तियों को आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए उनके दोष की पुष्टि की है। न्यायालय ने इस कृत्य को “कोर्ट की अवमानना के सबसे भयावह रूपों में से एक” करार देते हुए कहा कि ऐसे कार्य न्यायिक प्रक्रिया की जड़ पर प्रहार करते हैं। हालांकि, कोर्ट ने उनकी सजा छह माह की साधारण कैद से घटाकर एक माह कर दी।
मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला 17 नवम्बर 2004 को जिला मुंसिफ कोर्ट, तिरुचेंगोडे द्वारा पारित डिक्री से जुड़ा है, जिसमें J.K.K. रंगम्मल चैरिटेबल ट्रस्ट के पक्ष में कब्जा पुनर्प्राप्त करने और किराए की बकाया राशि वसूलने का आदेश दिया गया था। 2018 में जब इस डिक्री को क्रियान्वित करने की कार्यवाही शुरू हुई, तो प्रतिवादियों ने तीन कथित अंतरिम आदेशों (CRP Nos. 1467, 1468, और 1469/2018) की फोटो कॉपी प्रस्तुत की, जिनमें डिक्री पर रोक लगाने की बात कही गई थी।
हालांकि, जांच में यह सामने आया कि ऐसे कोई सिविल रिवीजन पेटिशन दाखिल ही नहीं हुए थे और जिस जज के नाम पर आदेश दिखाए गए थे — न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण — वह उस दिन संबंधित रोस्टर में थीं ही नहीं। इसके बाद डिक्रीधारी ने मद्रास हाईकोर्ट तथा नामक्कल के पुलिस अधीक्षक को शिकायत दर्ज कराई।
अवमानना कार्यवाही:
पुलिस जांच तथा डिक्रीधारी द्वारा दायर रिट याचिका (WP No. 22410/2018) के आधार पर मद्रास हाईकोर्ट ने Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 15(1) तथा 18(1) के तहत स्वतः संज्ञान लेते हुए अवमानना कार्यवाही प्रारंभ की। हालांकि मामला 2022 में औपचारिक रूप से रजिस्टर्ड हुआ, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसकी शुरुआत 2018 में ही हो चुकी थी जब एकल पीठ ने अवमानना कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया था।
हाईकोर्ट ने कई लोगों के खिलाफ आरोप तय किए, जिनमें अपीलकर्ता शन्मुगम @ लक्ष्मीनारायणन (Contemnor No. 4), एम. मुरुगानंदम (Contemnor No. 3) और एस. अमल राज (Contemnor No. 7) शामिल थे। इन पर न्यायालय की प्रक्रिया में बाधा डालने के उद्देश्य से फर्जी आदेश तैयार कर प्रस्तुत करने का आरोप था।
सुप्रीम कोर्ट में दलीलें:
अपीलकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि Contempt of Courts Act की धारा 20 के तहत यह कार्यवाही समयसीमा से बाहर है क्योंकि यह एक वर्ष के बाद शुरू की गई थी। साथ ही यह भी कहा गया कि आपराधिक अवमानना में साक्ष्य का स्तर आपराधिक मुकदमे के समान होना चाहिए और उचित रूप से आरोप तय नहीं किए गए।
प्रतिवादी पक्ष — जिसमें हाईकोर्ट और डिक्रीधारी शामिल थे — ने कहा कि कार्यवाही समयसीमा के भीतर शुरू की गई थी, क्योंकि रिट याचिका 20 अगस्त 2018 को दायर की गई थी और एकल पीठ द्वारा 5 सितम्बर 2018 को स्वतः संज्ञान लेने का आदेश दिया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि गवाहों के बयान, वॉयस रिकॉर्डिंग और फोरेंसिक रिपोर्ट सहित पर्याप्त साक्ष्य दोष सिद्ध करने के लिए मौजूद थे।
न्यायालय का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने अपीलकर्ताओं को दोषी ठहराने में कोई त्रुटि नहीं की। कोर्ट ने कहा:
“कोर्ट के फर्जी आदेश बनाना अवमानना का सबसे गंभीर कृत्य है। यह न केवल न्याय प्रशासन को बाधित करता है, बल्कि इसमें रिकॉर्ड की जालसाजी करने की अंतर्निहित मंशा होती है।”
कोर्ट ने कहा कि शन्मुगम @ लक्ष्मीनारायणन (C4) ने अन्य आरोपियों की मदद से फर्जी आदेश तैयार किए और उन्हें न्यायिक प्रक्रिया में प्रस्तुत किया गया। अमल राज (C7) ने फर्जी आदेश बनाने का विचार दिया और मुरुगानंदम (C3) ने इन्हें अदालत के बेलिफ को सौंपा।
कोर्ट ने In Re: Bineet Kumar Singh मामले का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति फर्जी आदेश का उपयोग करता है, भले ही वह उसे स्वयं ने न बनाया हो, वह अवमानना के अंतर्गत आता है।
सीमाबद्धता पर तर्कों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने Pallav Sheth v. Custodian निर्णय का हवाला दिया और कहा कि 2018 में कार्यवाही की शुरुआत वैध थी तथा औपचारिक रजिस्ट्रेशन में देरी से कार्यवाही अमान्य नहीं होती।
निष्कर्ष और निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने सभी तीन अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उनकी सजा को छह माह से घटाकर एक माह की साधारण कैद कर दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया:
“अपीलकर्ता 15 दिनों के भीतर मद्रास हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के समक्ष आत्मसमर्पण कर दंड भुगतें।”
यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता की रक्षा हेतु सुप्रीम कोर्ट के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है और यह संदेश देता है कि न्यायालय की प्रक्रियाओं के साथ धोखाधड़ी करने का गंभीर दंड भुगतना होगा।
निर्णय:
Shanmugam @ Lakshminarayanan & Others vs High Court of Madras,
Criminal Appeal Nos. 5245 and 4219 of 2024, and Criminal Appeal arising out of Diary No. 45480 of 2024