प्रेम के इज़हार मात्र से यौन इरादा सिद्ध नहीं होता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने POCSO मामले में आरोपी की बरी करने का फैसला बरकरार रखा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक किशोरी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों में आरोपी युवक की बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी है। कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोपी के यौन इरादे को साबित करने में असफल रहा।

न्यायमूर्ति संजय एस. अग्रवाल की एकल पीठ ने यह निर्णय पारित करते हुए कहा कि केवल प्रेम का इज़हार करने भर से भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354-D, 509, या POCSO अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत अपराध सिद्ध नहीं होता जब तक यौन आशय स्पष्ट रूप से साबित न हो।

मामला संक्षेप में

14 अक्टूबर 2019 को 15 वर्षीय छात्रा ने थाना कुरूद, जिला धमतरी में रिपोर्ट दर्ज करवाई कि जब वह स्कूल से अपनी सहेलियों हिना और काजल के साथ लौट रही थी, तब आरोपी ने उसके प्रति प्रेम प्रकट करते हुए चिल्लाकर “xxx I Love You” कहा। उसने यह भी आरोप लगाया कि पहले भी आरोपी ने उससे छेड़छाड़ की थी।

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पुलिस ने IPC की धारा 354-D, 509, POCSO अधिनियम की धारा 8 तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(va) के तहत मामला दर्ज किया। विशेष न्यायालय ने 27 मई 2022 को आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया, जिसके खिलाफ राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में अपील की।

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राज्य की दलीलें

राज्य की ओर से अधिवक्ता श्री आर. एन. पुस्टी ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता की जन्मतिथि को प्रमाणित करने वाले जन्म प्रमाणपत्र (प्र.प.3) की उपेक्षा की, जिसमें उसकी आयु 29.11.2004 बताई गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी जानबूझकर अनुसूचित जाति समुदाय की लड़की को परेशान कर रहा था, जो SC/ST अधिनियम की धारा 3(2)(va) के तहत अपराध है।

बचाव पक्ष की दलीलें

आरोपी की ओर से अधिवक्ता श्री शोभित कोश्टा ने Navendu Sudhir Gupta v. Honey Navendu Gupta (2024 SCC OnLine Bom 2078) और Khuman Singh v. State of M.P. [(2020) 18 SCC 763] पर भरोसा जताते हुए कहा कि पीड़िता ने कभी असहमति या विरोध प्रकट नहीं किया, इसलिए पीछा करने (stalking) का अपराध नहीं बनता। साथ ही, पीड़िता ने कभी नहीं कहा कि आरोपी ने उसे जाति के आधार पर परेशान किया।

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न्यायालय की विश्लेषणात्मक टिप्पणियां

पीड़िता की आयु:
कोर्ट ने स्वीकार किया कि जन्म प्रमाणपत्र एक अधिकृत दस्तावेज है और यह प्रमाणित करता है कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी।

POCSO अधिनियम की धारा 8:
कोर्ट ने Attorney General for India v. Satish [(2022) 5 SCC 545] में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए कहा:

“केवल ‘I Love You’ कहना यौन इरादे का प्रमाण नहीं है। अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आरोपी की मंशा यौन थी, इसलिए यह यौन उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आता।”

IPC की धारा 354-D और 509:
कोर्ट ने पाया कि पीड़िता और उसकी सहेलियों की गवाही में विरोधाभास था। पहले किए गए कथित उत्पीड़न की कोई रिपोर्ट या स्वतंत्र साक्षी नहीं था। पीड़िता के असहमति प्रकट करने का कोई प्रमाण नहीं मिला।

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SC/ST अधिनियम की धारा 3(2)(va):
कोर्ट ने कहा कि शिकायत, धारा 164 CrPC के तहत बयान, और गवाही में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता की जाति जानकर अपराध किया। Khuman Singh मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:

“यदि यह साबित नहीं होता कि अपराध केवल जाति के आधार पर किया गया, तो SC/ST अधिनियम के तहत सजा नहीं दी जा सकती।”

निर्णय

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दिया गया बरी करने का आदेश तर्कसंगत है और कोई हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।

“परिणामस्वरूप, अपील में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।”

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