न्यायालय डिक्री के पंजीकरण के समय क्षतिपूर्ति के हक पर सवाल नहीं उठा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जब डिक्री में क्षतिपूर्ति (damages) प्रदान की गई हो, तो कार्यान्वयन (Execution) न्यायालय पंजीकरण के स्तर पर यह सवाल नहीं उठा सकता कि डिक्रीधारी क्षतिपूर्ति का हकदार कैसे है। न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी ने अनुच्छेद 227 के तहत दायर सिविल पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए कहा,
“कार्यान्वयन न्यायालय डिक्री के पार नहीं जा सकता और न ही उसकी वैधता या शुद्धता पर सवाल उठा सकता।”

मामला क्या था

याचिकाकर्ता येंदुरी श्रीनिवास राव ने O.S. No. 423/2018 में पारित डिक्री के कार्यान्वयन हेतु एक कार्यान्वयन याचिका (E.P.) दाखिल की थी। परंतु कार्यान्वयन न्यायालय ने 17 मई 2025 को यह आपत्ति लगाकर याचिका लौटा दी कि—
“जब डिक्री में बकाया किराया दिया गया है, तब डिक्रीधारी क्षतिपूर्ति का हकदार कैसे है, यह स्पष्ट किया जाए। विवरण सहित गणना प्रस्तुत करें।”

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इसके बाद, याचिकाकर्ता ने 16 जून 2025 को याचिका पुनः प्रस्तुत की और बताया कि डिक्री में किराया बकाया के अतिरिक्त क्षतिपूर्ति भी प्रदान की गई है। फिर भी, न्यायालय ने 28 जून 2025 को दोबारा यह कहते हुए याचिका लौटा दी कि—
“निर्णय की प्रति संलग्न की जाए और 17.05.2025 की आपत्ति यथावत लागू रहेगी।”

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डिक्री का विवरण

O.S. No. 423/2018 में पारित डिक्री के अनुसार:

  • प्रतिवादी को तीन माह के भीतर वाद सूची संपत्ति को खाली कर, कब्जा सौंपना होगा,
  • ₹22,500/- बकाया किराया अदा करना होगा,
  • 01.05.2018 से कब्जा छोड़ने तक ₹4,500/- प्रतिमाह क्षतिपूर्ति देनी होगी,
  • ₹9,240/- मुकदमे का खर्च अदा करना होगा।

न्यायालय की विश्लेषणात्मक टिप्पणी

न्यायमूर्ति तिलहरी ने कहा कि डिक्री की धारा (iii) स्पष्ट रूप से क्षतिपूर्ति प्रदान करती है और प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि डिक्रीधारी क्षतिपूर्ति का भी हकदार है।

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उन्होंने कहा:
“जब डिक्री स्पष्ट रूप से क्षतिपूर्ति प्रदान करती है, तो पंजीकरण के समय कार्यान्वयन याचिका इस आधार पर नहीं लौटाई जा सकती कि डिक्रीधारी कैसे क्षतिपूर्ति का हकदार है। कार्यान्वयन न्यायालय डिक्री के पार नहीं जा सकता।”

सुप्रीम कोर्ट के उल्लेखित निर्णय

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के तीन निर्णयों का हवाला दिया:

  1. Sunder Dass v. Ram Prakash, (1977) 2 SCC 662 –
    “कार्यान्वयन न्यायालय डिक्री के पार नहीं जा सकता, सिवाय इसके कि डिक्री बिना अधिकार क्षेत्र के दी गई हो।”
  2. Sanwarlal Agrawal v. Ashok Kumar Kothari, (2023) 7 SCC 307 –
    “कार्यान्वयन न्यायालय को डिक्री को जैसा है वैसा ही मानकर कार्य करना होता है।”
  3. Pradeep Mehra v. Harijivan J. Jethwa, 2023 SCC OnLine SC 1395 –
    “Section 47 CPC के तहत कार्यान्वयन न्यायालय डिक्री की वैधता पर सवाल नहीं उठा सकता जब तक कि वह आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर न हो।”

अंतिम आदेश

न्यायालय ने सिविल पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए निर्देश दिया:

  • मूल कार्यान्वयन याचिका को वापस कर उचित प्रक्रिया के तहत पुनः प्रस्तुत किया जाए,
  • कार्यान्वयन न्यायालय डिक्री का परीक्षण कर E.P. का पंजीकरण करे,
  • याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित निर्णय की प्रति प्रस्तुत करनी होगी।
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याचिका में किसी भी पक्ष को लागत नहीं दी गई। सभी लंबित अंतरिम आवेदन स्वतः समाप्त माने गए।

मामला: येंदुरी श्रीनिवास राव बनाम एम. श्रीनिवास राव
विवरण: सिविल पुनरीक्षण याचिका संख्या 1624/2025

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