कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फैसले को चुनौती देते हुए अपनी कानूनी लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट में ले गए हैं। हाईकोर्ट ने उनके प्रशासन के दौरान अस्पताल में कथित वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित मुकदमे में पक्षकार के रूप में शामिल किए जाने के उनके अनुरोध को खारिज कर दिया था।
घोष द्वारा यह कदम कलकत्ता हाईकोर्ट के 23 अगस्त के फैसले के बाद उठाया गया है, जिसमें न केवल चल रहे मामले में उनकी संलिप्तता से इनकार किया गया, बल्कि जांच को राज्य द्वारा गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) तक बढ़ा दिया गया। यह निर्णय अस्पताल के पूर्व उपाधीक्षक अख्तर अली की मांगों के अनुरूप है, जिन्होंने घोष के कार्यकाल के दौरान कथित रूप से हुई वित्तीय विसंगतियों की जांच के लिए प्रवर्तन निदेशालय को शामिल करने की याचिका दायर की थी।
आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के इर्द-गिर्द विवाद एक जूनियर डॉक्टर की दुखद मौत के बाद और बढ़ गया, जिसका शव 9 अगस्त को अस्पताल के सेमिनार हॉल में मिला था, जिस पर गंभीर चोट के निशान थे, जो हत्या और संभावित यौन उत्पीड़न का संकेत देते हैं। इस घटना के कारण न केवल कोलकाता पुलिस ने एक नागरिक स्वयंसेवक को गिरफ्तार किया, बल्कि पूरे देश में विरोध प्रदर्शन भी भड़क उठे, जिससे अस्पताल के प्रबंधन पर और भी संदेह पैदा हो गया।
हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देकर, घोष अपनी प्रासंगिकता साबित करना चाहते हैं और प्रिंसिपल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वित्तीय कुप्रबंधन के आरोपों से संबंधित कार्यवाही को प्रभावित करना चाहते हैं। मामले में “आवश्यक पक्ष” माने जाने की उनकी याचिका उनके नाम को साफ करने या उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों के नतीजों को कम करने के उनके प्रयास को दर्शाती है।