सैन्य विकलांगता पेंशन से जुड़े एक अहम मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने वायुसेना के एक सेवानिवृत्त सार्जेंट को दी गई विकलांगता पेंशन को रद्द करते हुए यह मामला फिर से सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) को विचारार्थ भेज दिया है। अदालत ने कहा कि मामले में कई जरूरी पहलुओं पर गहराई से विचार नहीं किया गया।
यह मामला 17 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति अजय दीगपाल की खंडपीठ के समक्ष आया था। हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता की हृदय संबंधी बीमारी जन्मजात थी, लेकिन यह जांच नहीं की गई कि क्या यह स्थिति सैन्य सेवा के कारण और अधिक गंभीर हुई। इस आधार पर न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया गया।
मामले का पृष्ठभूमि

सार्जेंट कमल कुमार ने दिसंबर 2000 में भारतीय वायुसेना में भर्ती ली थी और 20 वर्षों की सेवा के बाद दिसंबर 2020 में सेवानिवृत्त हुए। सेवा के दौरान उन्हें जन्मजात बाइ-कस्पिड एऑर्टिक वॉल्व की बीमारी पाई गई, जो बाद में मध्यम स्तर की एऑर्टिक स्टेनोसिस और हल्की एऑर्टिक रिगर्जिटेशन में परिवर्तित हो गई।
जब उन्हें विकलांगता पेंशन से वंचित किया गया, तो उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया। 1 फरवरी 2023 को AFT ने सुप्रीम कोर्ट के धर्मवीर सिंह बनाम भारत संघ के फैसले का हवाला देते हुए उनके पक्ष में निर्णय दिया और पेंशन मंजूर की।
सरकार की आपत्ति और हाईकोर्ट की टिप्पणी
भारत सरकार ने इस निर्णय को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी। सरकार की ओर से प्रीमटोश के. मिश्रा (केंद्रीय सरकारी अधिवक्ता) ने अधिवक्ताओं सार्थक आनंद और प्ररब्ध तिवारी के साथ यह तर्क दिया कि बीमारी जन्मजात थी और उसका सैन्य सेवा से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।
वहीं, सार्जेंट कमल कुमार की ओर से अधिवक्ता राज कुमार ने तर्क दिया कि यद्यपि यह बीमारी जन्मजात थी, लेकिन सेवा के दो दशकों में उसकी स्थिति बिगड़ना यह दर्शाता है कि सैन्य सेवा ने उसे और गंभीर बनाया, और इसी आधार पर उन्हें विकलांगता पेंशन मिलनी चाहिए।
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर ने कहा कि कोई भी जन्मजात बीमारी अपने आप में पेंशन से अयोग्यता का कारण नहीं बनती। यदि यह साबित हो जाए कि बीमारी सेवा के दौरान बढ़ी है या उससे प्रभावित हुई है, तो यह विकलांगता पेंशन का आधार बन सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि AFT ने इस पहलू पर समुचित रूप से विचार नहीं किया।
आगे की प्रक्रिया और कानूनी महत्व
हाईकोर्ट ने 1 फरवरी 2023 का AFT का आदेश रद्द कर दिया और मामले को पुनः विचार हेतु वापस भेज दिया। न्यायाधिकरण को निर्देश दिया गया है कि वह इस मामले की अगली सुनवाई 12 अगस्त 2025 को करे और शीघ्रता से निपटारा करे।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि सैन्य कार्मिकों को केवल इस आधार पर विकलांगता पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता कि उनकी बीमारी जन्मजात थी। यदि यह सिद्ध हो कि उनकी स्थिति सेवा के दौरान बिगड़ी है, तो उनके दावे पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।