बिजली अधिनियम | क्षतिग्रस्त ट्रांसफॉर्मर की जगह नए ट्रांसफॉर्मर लगाने की लागत टैरिफ विनियमों के तहत पूंजीगत व्यय में शामिल नहीं की जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

पावरग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग एवं अन्य वाद में सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2025 को पावरग्रिड द्वारा दायर दो अपीलों को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि इंटर-कनेक्टिंग ट्रांसफॉर्मर (ICTs) के क्षतिग्रस्त होने पर उनके प्रतिस्थापन की लागत, CERC टैरिफ विनियम, 2004 के विनियम 53 के तहत अतिरिक्त पूंजीगत व्यय के रूप में मान्य नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि क्षति से हुआ नुकसान अपीलकर्ता की स्व-बीमा नीति के तहत कवर था।

पृष्ठभूमि:

यह मामला बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 125 के तहत पावरग्रिड द्वारा दायर नागरिक अपील संख्या 5857-5858/2011 से संबंधित है, जिसमें 23 मार्च 2011 के विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी गई थी। यह अपीलें, CERC द्वारा याचिका संख्या 68 व 80/2008 को खारिज किए जाने के विरुद्ध थीं।

पावरग्रिड ने 2006 में अपने रिहंद-I ट्रांसमिशन सिस्टम में क्षतिग्रस्त हुए ट्रांसफॉर्मर के स्थान पर नए ट्रांसफॉर्मर लगाने के व्यय को अतिरिक्त पूंजीगत व्यय के रूप में अनुमोदित करने की मांग की थी और इसके आधार पर ट्रांसमिशन शुल्कउपलब्धता प्रमाण पत्र में संशोधन की मांग की थी।

अपीलकर्ता की दलीलें:

  • बल्लभगढ़ और मंडोला में स्थित ICTs गर्मी के चरम मौसम में तत्काल आवश्यकता के चलते बदले गए।
  • विनियम 53(2)(iv) के तहत यह आवश्यक कार्य था, जिससे परियोजना का सफल संचालन सुनिश्चित हो सके।
  • स्व-बीमा कोष लागू नहीं होता क्योंकि मशीनरी ब्रेकडाउन के कारण ट्रांसफॉर्मर फेल हुए, न कि सीधे आग के कारण।
  • गलत व्याख्या के कारण ₹23 करोड़ से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।

प्रतिवादी (लाभार्थी और CERC) की दलीलें:

  • ICTs का प्रतिस्थापन नियमित रखरखाव का कार्य था, जिससे लाभार्थियों को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिला।
  • विनियम 53 केवल अतिरिक्त कार्यों पर लागू होता है, न कि पहले से मौजूद यंत्रों के प्रतिस्थापन पर।
  • बीमा कोष में आग से संबंधित नुकसान शामिल था, अतः इसकी लागत टैरिफ से वसूलना उचित नहीं।
  • उपलब्धता प्रमाण पत्र में संशोधन का कोई आधार नहीं था।
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कोर्ट का विश्लेषण:

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयान की खंडपीठ ने तीन प्रमुख प्रश्नों पर विचार किया:

  1. क्या ICTs के प्रतिस्थापन पर पूंजीगत व्यय की अनुमति दी जा सकती है?
  2. क्या स्व-बीमा नीति उस नुकसान को कवर करती है?
  3. क्या उपलब्धता प्रमाण पत्रों में संशोधन होना चाहिए?

निर्णय:

  • प्रश्न 1: ICTs का प्रतिस्थापन विनियम 53(2)(iv) के तहत ‘अतिरिक्त कार्य’ नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा, “अपीलकर्ता द्वारा केवल प्रतिस्थापन व पुनर्नियोजन किया गया था, यह कोई नया अतिरिक्त कार्य नहीं है।” सिस्टम का रखरखाव पावरग्रिड का वैधानिक दायित्व है।
  • प्रश्न 2: ट्रांसफॉर्मर को हुई क्षति आग से हुई थी, जो मशीनरी ब्रेकडाउन से उत्पन्न हुई। यह स्व-बीमा कोष के तहत कवर होता है। कोर्ट ने New India Assurance Co. Ltd. बनाम Zuari Industries Ltd. निर्णय का हवाला दिया।
  • प्रश्न 3: चूंकि व्यय पूंजीकरण योग्य नहीं था, इसलिए उपलब्धता प्रमाण पत्रों के संशोधन का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
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अंततः सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल क्षतिग्रस्त उपकरणों के प्रतिस्थापन मात्र से टैरिफ विनियमों के तहत अतिरिक्त पूंजीगत व्यय का दावा नहीं किया जा सकता।

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