ओडिशा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एक सुशिक्षित पत्नी केवल भरण-पोषण प्राप्त करने के उद्देश्य से बेरोजगार नहीं रह सकती। न्यायमूर्ति जी. सतपथी ने निचली अदालत के आदेश में संशोधन करते हुए मासिक भरण-पोषण राशि को कम कर दिया। अदालत ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण उन लोगों के लिए है जो वास्तव में अपनी आजीविका चलाने में असमर्थ हैं, न कि उनके लिए जो सक्षम होने के बावजूद काम करने से बचते हैं।
मामला क्या था?
यह मामला पति-पत्नी के बीच भरण-पोषण विवाद से जुड़ा था, जिसमें पारिवारिक न्यायालय ने पति को अपनी अलग रह रही पत्नी को प्रति माह ₹8,000 देने का आदेश दिया था। इस आदेश को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और दलील दी कि पत्नी शिक्षित है, पूर्व में काम कर चुकी है और अपनी आजीविका स्वयं चला सकती है, लेकिन उसने जानबूझकर बेरोजगार रहना चुना है। दूसरी ओर, पत्नी ने तर्क दिया कि वह वर्तमान में बेरोजगार है और उसे आर्थिक सहायता की आवश्यकता है।
महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दे
हाईकोर्ट ने इस मामले में निम्नलिखित कानूनी बिंदुओं पर विचार किया:
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- क्या एक शिक्षित और कार्य-अनुभव वाली पत्नी CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार हो सकती है?
- पति की वित्तीय जिम्मेदारियों और पत्नी की कमाई की क्षमता के बीच संतुलन कैसे स्थापित किया जाए?
- धारा 125 CrPC का उद्देश्य क्या है – क्या यह केवल उन लोगों के लिए है जो वास्तव में आत्मनिर्भर नहीं हो सकते, या फिर यह उन लोगों के लिए भी लागू होता है जो स्वेच्छा से काम न करने का निर्णय लेते हैं?
कोर्ट की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति जी. सतपथी ने कहा कि भरण-पोषण कानून का उद्देश्य किसी भी सक्षम व्यक्ति को आर्थिक रूप से निर्भर बनाना नहीं है। अदालत ने अपने फैसले में कहा:
“कानून उन पत्नियों को प्रोत्साहित नहीं करता जो केवल पति पर वित्तीय भार डालने के लिए कार्य नहीं करतीं या कार्य करने की कोशिश भी नहीं करतीं, जबकि उनके पास उचित शिक्षा और उच्च योग्यता है।”
अदालत ने आगे कहा कि भरण-पोषण का प्रावधान सामाजिक सुरक्षा के उद्देश्य से है, लेकिन पत्नी की शिक्षा, आर्थिक स्थिति और नौकरी पाने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए ही इसकी राशि तय की जानी चाहिए।
इसके अलावा, कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दिया:
- पत्नी एक साइंस ग्रेजुएट है और उसके पास पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा है।
- उसने पूर्व में मीडिया संगठनों में कार्य किया है और उसके पास रोजगार के पर्याप्त अवसर हैं।
- हालांकि वह वर्तमान में बेरोजगार है, लेकिन वह अपनी आजीविका खुद चला सकती है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 125 का दुरुपयोग केवल आर्थिक निर्भरता के लिए नहीं किया जाना चाहिए, विशेष रूप से तब जब याचिकाकर्ता के पास योग्यताएं और कार्य-अनुभव हो।
अदालत का फैसला
पति की वित्तीय स्थिति और उसकी आश्रित मां की जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की राशि ₹8,000 से घटाकर ₹5,000 प्रति माह कर दी।
कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश दिए:
- पति को बकाया राशि को चार द्विमासिक किस्तों में चुकाना होगा, जिसमें पहली किस्त 7 मार्च 2025 को देनी होगी।
- संशोधित भरण-पोषण राशि आवेदन की तारीख से प्रभावी होगी।