चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा– मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण पर केवल आयोग का अधिकार, अदालत का हस्तक्षेप उचित नहीं

चुनाव आयोग (ECI) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि पूरे देश में नियमित अंतराल पर मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) कराने का कोई भी न्यायिक निर्देश उसके विशिष्ट संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप होगा।

अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका के जवाब में दाखिल शपथपत्र में आयोग ने कहा कि उसे संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत तथा संबंधित कानूनों के आधार पर यह पूर्ण विवेकाधिकार प्राप्त है कि वह कब और किस प्रकार मतदाता सूची का पुनरीक्षण करे। उपाध्याय ने अपनी याचिका में पूरे देश में नियमित रूप से विशेष पुनरीक्षण कराने और चुनाव से पहले यह प्रक्रिया सुनिश्चित करने की मांग की थी ताकि केवल भारतीय नागरिक ही देश की राजनीति और नीतियों का निर्धारण करें।

शपथपत्र में आयोग ने कहा कि अनुच्छेद 324 के अंतर्गत संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए मतदाता सूची तैयार करने तथा उसका पुनरीक्षण कराने का संपूर्ण अधिकार चुनाव आयोग को सौंपा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी समय-समय पर इस प्रावधान की व्याख्या करते हुए आयोग को व्यापक (plenary) अधिकार प्राप्त होने की पुष्टि की है।

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आयोग ने बताया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21 में यह प्रावधान है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण आम चुनाव, विधानसभा चुनाव या उपचुनाव से पहले किया जाए, लेकिन इसके लिए कोई कठोर समयसीमा निर्धारित नहीं है। इसी तरह, मतदाता नियम 1960 का नियम 25 आयोग को यह विवेक देता है कि वह परिस्थितियों के अनुसार संक्षिप्त या गहन पुनरीक्षण कराए।

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आयोग ने अदालत को बताया कि उसने 5 जुलाई 2025 को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (बिहार को छोड़कर) के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को पत्र लिखकर 1 जनवरी 2026 को अर्हता तिथि मानते हुए विशेष पुनरीक्षण की पूर्व तैयारियाँ शुरू करने के निर्देश दिए हैं। इस प्रक्रिया की समीक्षा के लिए 10 सितंबर को नई दिल्ली में सभी सीईओ का सम्मेलन भी आयोजित किया गया।

शपथपत्र में कहा गया कि आयोग मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की अपनी जिम्मेदारी से पूरी तरह अवगत है और 24 जून 2025 के आदेश के तहत विभिन्न राज्यों में SIR प्रक्रिया पहले से ही प्रारंभ की जा चुकी है।

8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि बिहार में चल रहे विशेष पुनरीक्षण में आधार कार्ड को पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करना अनिवार्य होगा। हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। अदालत ने चुनाव आयोग को 9 सितंबर तक इस आदेश का पालन करने को कहा।

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बिहार में 2003 के बाद पहली बार हो रहे SIR ने राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया से लोगों को मताधिकार से वंचित किया जा रहा है। वहीं, आयोग का कहना है कि इस अभ्यास का उद्देश्य मृत मतदाताओं, डुप्लीकेट वोटरों और अवैध प्रवासियों के नाम सूची से हटाना है।

आयोग की 24 जून की अधिसूचना के अनुसार, बिहार की अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होगी। पुनरीक्षण के दौरान राज्य में मतदाताओं की संख्या 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ रह गई है।

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उपाध्याय की याचिका में कहा गया था कि पूरे देश में नियमित अंतराल पर मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अनिवार्य किया जाए ताकि अवैध प्रवासियों और अयोग्य व्यक्तियों को मतदाता सूची से बाहर रखा जा सके। लेकिन चुनाव आयोग ने याचिका खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि पुनरीक्षण की पद्धति और समय-सीमा तय करने का अधिकार केवल आयोग को है।

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