दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा है कि केवल इस आधार पर कि मृतका ने आत्महत्या अपने मायके में की थी, भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी के तहत दहेज हत्या के अपराध से इनकार नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने यह अवलोकन आरोपी विनय द्वारा दायर नियमित जमानत याचिका (BAIL APPLN. 4627/2024) को खारिज करते हुए किया।
पृष्ठभूमि
27 अप्रैल 2023 को पुलिस थाना जाफरपुर कलां में एफआईआर संख्या 79/2023 दर्ज की गई थी, जो मृतका रवीना के पिता सुरेश कुमार की शिकायत के आधार पर की गई थी। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी/498ए/34 के तहत आरोप तय किए गए। शिकायतकर्ता के अनुसार, रवीना की शादी आरोपी विनय से 22 फरवरी 2023 को हुई थी। अगले ही दिन विनय ने कथित तौर पर रवीना से कहा कि वह उसकी पसंद नहीं है और उस पर पारिवारिक दबाव में शादी करनी पड़ी।
शिकायत में यह भी कहा गया कि रवीना को ससुराल में दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा। आरोप था कि शादी में दिए गए ₹7,00,000 से आरोपी और उसका परिवार संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने कहा कि यह रकम सिर्फ एक छोटी कार के लिए पर्याप्त है और अधिक धन की मांग की गई। लगभग 15 मार्च 2023 को रवीना ने अपने पिता को यह सब बताया और फिर मायके लौट आई। इसके बाद वह अवसाद में रहने लगी। 27 अप्रैल 2023 को वह अपने घर में वेंटिलेटर से लटकी हुई मिली। पुलिस को पीसीआर कॉल पर बुलाया गया।
आरोपी की दलीलें
आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि मृतका ने आत्महत्या अपने मायके में की थी, न कि ससुराल में, इसलिए धारा 304बी के आवश्यक तत्व पूरे नहीं होते। यह भी कहा गया कि 15 मार्च 2023 (जब मृतका मायके आई) से लेकर 27 अप्रैल 2023 (घटना की तिथि) के बीच दहेज प्रताड़ना का कोई आरोप नहीं लगाया गया। वकील ने जावेद गुलाम नबी शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य, नितीश चौहान बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, और अमरकांत महतो बनाम राज्य जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि मुकदमे में देरी के चलते आरोपी को जमानत दी जानी चाहिए।
जमानत का विरोध
अतिरिक्त लोक अभियोजक और शिकायतकर्ता के वकील ने जमानत का विरोध किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मृतका और आरोपी के बीच बातचीत जारी थी, विशेष रूप से 23 अप्रैल 2023 को हुई 584 सेकंड की फोन कॉल का उल्लेख किया गया, जो रवीना की आत्महत्या से सिर्फ चार दिन पहले की थी। उनका तर्क था कि यह आत्महत्या लगातार प्रताड़ना का नतीजा थी। अभियोजक ने सुप्रीम कोर्ट के शबीन अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य [2025 INSC 307] के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि दहेज हत्या के मामलों में न्यायपालिका को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
न्यायालय की समीक्षा
न्यायमूर्ति काठपालिया ने कहा कि बचाव पक्ष द्वारा उद्धृत निर्णय वर्तमान मामले के अनुकूल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इन मामलों की परिस्थितियां अलग थीं, जैसे लंबी न्यायिक हिरासत या साक्ष्य का अभाव।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के शबीन अहमद के फैसले पर भरोसा जताते हुए कहा कि दहेज हत्याएं “सामाजिक न्याय और समानता की जड़ पर प्रहार करती हैं।” न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार के गंभीर अपराधों में न्याय से समझौता नहीं किया जाना चाहिए और आरोपियों को जमानत देना अनुचित होगा।
न्यायालय ने कहा:
“मैं खुद को इस बात से सहमत नहीं कर पा रहा कि सिर्फ इसलिए कि मृतका ने आत्महत्या अपने मायके में की, न कि ससुराल में, यह दहेज हत्या का मामला नहीं बनता। जिस स्थान पर प्रताड़ित महिला आत्महत्या करने को मजबूर होती है, उसका कोई महत्व नहीं है।”
न्यायमूर्ति काठपालिया ने समझाया कि 1986 में जोड़ी गई धारा 304बी को उसके विधायी उद्देश्य के साथ पढ़ा जाना चाहिए — जो कि दहेज से जुड़ी प्रथाओं और अत्याचारों से निपटना है। उन्होंने सतबीर सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2021) 6 SCC 1 और कंसराज बनाम पंजाब राज्य (2000) 5 SCC 207 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि “मृत्यु से ठीक पहले” शब्दावली का तात्पर्य सापेक्ष है और इसे पूरे घटनाक्रम के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
अदालत ने कहा कि कथित दहेज प्रताड़ना शादी के तुरंत बाद शुरू हो गई थी और रवीना के मायके लौटने के बाद भी मौखिक रूप से जारी रही। आरोपी ने 19 अप्रैल 2023 को न्यायिक पृथक्करण (judicial separation) के लिए भी याचिका दायर की थी, जो कि रवीना द्वारा की गई अंतिम कॉल (23 अप्रैल 2023) और आत्महत्या (27 अप्रैल 2023) के कुछ ही दिन पहले की बात है।
“इन परिस्थितियों को देखते हुए, जो अब तक परीक्षण में प्रमाणित नहीं हुई हैं, मैं आरोपी/आवेदक के वकील की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकता कि मृतका की मृत्यु से ठीक पहले प्रताड़ना का आरोप न होने के कारण धारा 304बी का अपराध नहीं बनता।”
निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि आरोपों को प्रारंभिक साक्ष्यों जैसे कॉल रिकॉर्ड और प्रताड़ना के निरंतर आरोपों द्वारा समर्थित पाया गया और इस आधार पर जमानत याचिका खारिज कर दी। अदालत ने कहा:
“उपरोक्त चर्चा के आलोक में, मुझे आरोपी/आवेदक को जमानत पर रिहा करने का कोई उपयुक्त आधार नहीं दिखता। अतः याचिका खारिज की जाती है।”
अदालत ने आदेश की एक प्रति संबंधित जेल अधीक्षक को आरोपी की जानकारी हेतु भेजने का निर्देश भी दिया।