तलाकशुदा महिला साझा घर में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकतीं, लेकिन उचित प्रक्रिया के बिना उन्हें बेदखल भी नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति के साथ पहले के घरेलू संबंधों के आधार पर साझा घर में रहने के अधिकार का दावा नहीं कर सकती। हालाँकि, न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी महिला को उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना बेदखल नहीं किया जा सकता। यह निर्णय न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन की अध्यक्षता में सीआरएल. रेव. पेट 463/2024 के मामले में आया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला पलक्कड़ की 45 वर्षीय महिला के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जिसने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 397 और 401 के तहत याचिका दायर की थी। याचिका में पलक्कड़ के सत्र न्यायालय और पलक्कड़ के प्रथम श्रेणी-II के न्यायिक मजिस्ट्रेट के निर्णयों को चुनौती दी गई थी। महिला और उसकी नाबालिग बेटी अपने पूर्व पति के घर में रह रही थी, जिससे उसने 27 अगस्त, 2009 को शादी के बाद तलाक ले लिया था।

शामिल कानूनी मुद्दे

1. तलाक के बाद निवास का अधिकार: मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या तलाकशुदा महिला पिछले घरेलू संबंध के आधार पर घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत साझा घर में रहने के अधिकार का दावा कर सकती है।

2. उचित प्रक्रिया के बिना बेदखली: दूसरा मुद्दा यह था कि क्या मजिस्ट्रेट ऐसे बेदखली के खिलाफ निषेधात्मक आदेश की मांग करने वाले याचिकाकर्ता को बेदखल करने का निर्देश दे सकता है।

न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय

न्यायमूर्ति ए. बदरुद्दीन ने फैसला सुनाते हुए प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विस्तार से उल्लेख किया। न्यायालय ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम घरेलू संबंध में रहने वाली प्रत्येक महिला को साझा घर में रहने का अधिकार प्रदान करता है, चाहे उसका कानूनी अधिकार, शीर्षक या संपत्ति में कोई भी हित हो। यह अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन दाखिल करने के समय घरेलू संबंध के अस्तित्व पर निर्भर नहीं है।

हालांकि, न्यायमूर्ति बदरुद्दीन ने स्पष्ट किया कि यह अधिकार केवल पिछले संबंध के आधार पर निवास चाहने वाली तलाकशुदा महिलाओं तक विस्तारित नहीं है। “तलाकशुदा महिला पति के साथ पहले के घरेलू संबंध के आधार पर साझा घर में निवास के अधिकार का दावा नहीं कर सकती। लेकिन तलाक के समय या तलाक के बाद साझा घर में रहने वाली तलाकशुदा महिलाओं को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही प्रतिवादी द्वारा साझा घर या उसके किसी हिस्से से बेदखल या बहिष्कृत नहीं किया जाएगा,” फैसले में कहा गया।

विस्तृत निष्कर्ष

1. बेदखली आदेश और कानूनी प्रक्रिया: अदालत ने पाया कि मजिस्ट्रेट द्वारा याचिकाकर्ता को एक महीने के भीतर घर खाली करने का निर्देश देने वाला आदेश कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं था। तर्क यह था कि याचिकाकर्ता को बेदखल करने के लिए प्रतिवादी द्वारा कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई थी। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यहां तक ​​कि एक अतिचारी को भी बलपूर्वक बेदखल नहीं किया जा सकता है और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए।

2. लंबित निर्णय और अंतरिम राहत: न्यायालय ने याचिकाकर्ता और उसके नाबालिग बच्चे को पलक्कड़ के प्रथम श्रेणी-II न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एम.सी.सं.59/2023 में अंतिम निर्णय आने तक साझा घर में रहने की अनुमति दी। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि प्रतिवादी कानून के अनुसार याचिकाकर्ता को कानूनी रूप से बेदखल करने की मांग करने के लिए स्वतंत्र है, और एम.सी.सं.59/2023 के लंबित रहने मात्र से ऐसी कार्रवाइयों पर रोक नहीं लगेगी।

शामिल वकील:

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता राजेश शिवरामन कुट्टी और अरुल मुरलीधरन ने किया। प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता वर्गीस सी. कुरियाकोस और अमृता जे. ने किया, जबकि केरल राज्य का प्रतिनिधित्व लोक अभियोजक श्री एम.पी. प्रशांत ने किया।

इस निर्णय के लिए केस संख्या सीआरएल. रेव. पेट 463/2024 है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles