सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि आपराधिक विश्वासघात (Criminal Breach of Trust) और धोखाधड़ी (Cheating) दो अलग-अलग अपराध हैं और ये एक ही तथ्यों पर एक साथ नहीं चल सकते। कोर्ट ने एक पूर्व साझेदार के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि दीवानी (civil) विवाद को निपटाने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग किया जा रहा था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने इंदर चंद बागड़ी बनाम जगदीश प्रसाद बागड़ी और अन्य (क्रिमिनल अपील संख्या 5000/2025) के मामले में यह फैसला सुनाया। पीठ ने गौहाटी हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी की याचिका को खारिज कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद 1 अक्टूबर 1976 को गठित ‘इंदरचंद बागड़ी एंड ब्रदर्स’ नामक एक साझेदारी फर्म से जुड़ा है। अपीलकर्ता, इंदर चंद बागड़ी ने भारतीय खाद्य निगम (FCI) को पट्टे पर देने के लिए गोदाम बनाने के उद्देश्य से असम के कामरूप जिले के मौजा बेलटोला स्थित अपनी जमीन साझेदारी में दी थी।
साझेदारों ने 3 अप्रैल 1981 को एक पूरक समझौता (supplementary agreement) किया, जिसमें यह सहमति बनी कि 1 जून 1993 को FCI के साथ पट्टा समाप्त होने पर, जमीन और उस पर बने निर्माण का पूरा अधिकार वापस अपीलकर्ता (मूल मालिक) के पास आ जाएगा। इसके बाद 1997 में फर्म को भंग कर दिया गया।
वर्ष 2011 में, अपीलकर्ता ने यह संपत्ति अपने भतीजे को बेच दी। इसके बाद, शिकायतकर्ता जगदीश प्रसाद बागड़ी ने 2012 में बिक्री को चुनौती देते हुए एक दीवानी मुकदमा दायर किया। इसके बाद, कथित घटना के लगभग 16 साल बाद, 2013 में शिकायतकर्ता ने अपीलकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 420 (धोखाधड़ी) और 120B (साजिश) के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई।
निचली अदालत ने इस पर संज्ञान लिया और गौहाटी हाईकोर्ट ने 13 फरवरी 2018 को कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि यह शिकायत समय सीमा (limitation) से बाहर है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, क्योंकि इसी विषय पर पहले से ही एक दीवानी मुकदमा लंबित है। उन्होंने 1981 के पूरक समझौते और 1997 के विघटन विलेख का हवाला देते हुए कहा कि संपत्ति कानूनी रूप से उनके पास वापस आ गई थी।
दूसरी ओर, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि अपीलकर्ता को फर्म की संपत्ति सौंपी गई थी (entrustment), जिसे उन्होंने बेईमानी से तीसरे पक्ष को बेचकर हड़प लिया। उनका कहना था कि भले ही विवाद दीवानी प्रकृति का हो, लेकिन इसमें आपराधिक तत्व भी मौजूद हैं।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 406 और 420 के तत्वों की बारीकी से जांच की। धोखाधड़ी के आरोपों पर, पीठ ने इंदर मोहन गोस्वामी बनाम उत्तरांचल राज्य (2007) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि धोखाधड़ी साबित करने के लिए यह दिखाना आवश्यक है कि आरोपी का इरादा शुरुआत से ही बेईमानी का था। कोर्ट ने कहा कि बाद में वादे को पूरा न करने से यह नहीं माना जा सकता कि शुरू से ही इरादा धोखा देने का था।
कोर्ट ने पाया कि शिकायतकर्ता यह साबित करने में विफल रहा कि संपत्ति अपीलकर्ता को कैसे ‘सौंपी’ गई थी या कैसे उसका ‘दुरुपयोग’ किया गया, क्योंकि 1981 के समझौते के तहत जमीन अपीलकर्ता के पास वापस आनी थी।
धारा 406 और 420 को एक साथ लागू करने पर, कोर्ट ने दिल्ली रेस क्लब (1940) लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) के फैसले पर भरोसा करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“आपराधिक विश्वासघात के मामले में, अपराधी को संपत्ति कानूनी रूप से सौंपी जाती है और वह बेईमानी से उसका दुरुपयोग करता है। जबकि, धोखाधड़ी के मामले में, अपराधी शुरुआत से ही किसी व्यक्ति को धोखा देकर संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है। ऐसी स्थिति में, दोनों अपराध एक साथ मौजूद नहीं हो सकते। इसलिए, शिकायत में दोनों अपराध शामिल नहीं हो सकते क्योंकि वे स्वतंत्र और अलग हैं।”
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप दुर्भावनापूर्ण थे और विवाद पूरी तरह से दीवानी प्रकृति का था। कोर्ट ने हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल (1992) के सिद्धांतों को लागू करते हुए कहा कि यह ऐसा मामला है जहां आरोपों से कोई अपराध नहीं बनता है।
कोर्ट ने विशाल नोबल सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) का भी उल्लेख किया और आपराधिक न्याय तंत्र के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने कहा कि अदालतों को सतर्क रहना चाहिए और समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले ऐसे कृत्यों को शुरुआत में ही रोक देना चाहिए।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए गौहाटी के सब-डिविजनल ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।
केस डिटेल:
- केस टाइटल: इंदर चंद बागड़ी बनाम जगदीश प्रसाद बागड़ी और अन्य
- केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 5000/2025
- कोरम: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन
- साइटेशन: 2025 INSC 1350




