दिल्ली हाईकोर्ट 28 जनवरी को करेगी यासीन मलिक को मौत की सज़ा देने की NIA की अर्जी पर बंद कमरे में सुनवाई पर विचार

दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह 28 जनवरी को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की उस अर्जी पर विचार करेगी जिसमें एजेंसी ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) प्रमुख यासीन मलिक को आतंकवाद फंडिंग मामले में मौत की सज़ा देने की अपनी याचिका की बंद कमरे में (इन-कैमरा) सुनवाई की मांग की है।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने NIA के वकील अक्षय मलिक की उस मांग पर कहा, “हम विचार करेंगे। सूचीबद्ध करें 28 जनवरी को,” जब उन्होंने आग्रह किया कि इस मामले में एक अलग वीडियो लिंक दिया जाए जो आम जनता की पहुंच में न हो।

NIA ने 24 मई 2022 के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें ट्रायल कोर्ट ने यासीन मलिक को कड़ी यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं के तहत दोषी ठहराकर उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। ट्रायल कोर्ट ने उस वक्त कहा था कि भले ही मलिक को “भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने” का दोषी पाया गया है, लेकिन यह मामला “दुर्लभतम में दुर्लभ” श्रेणी का नहीं है, जिसमें मौत की सज़ा दी जा सके।

तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए पेश हुए मलिक ने सुनवाई टालने पर आपत्ति जताई और कहा कि उन्हें “मौत की सज़ा होगी या नहीं” इस असमंजस में रखना मानसिक यातना जैसा है।
उन्होंने कहा, “तीन साल से NIA की अपील लंबित है। मैंने तीन महीने पहले ही हलफनामा दाखिल कर दिया था। किसी व्यक्ति को इस मानसिक यातना में रखना कि उसे फांसी दी जाएगी या नहीं…”

गौरतलब है कि 9 अगस्त 2024 को मलिक ने अदालत को बताया था कि वह खुद अपना मामला पेश करेंगे।

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NIA की याचिका के जवाब में दिए गए अपने 85 पन्नों के हलफनामे में मलिक ने कहा कि 1994 में सशस्त्र संघर्ष छोड़ने के बाद उन्होंने सरकार और खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर काम किया था और संघर्ष-विराम (ceasefire) समझौते के तहत संवाद बनाए रखा था।

उन्होंने दावा किया कि सभी केंद्र सरकारों ने — पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल (2019 तक) तक — इस समझौते का सम्मान किया।
मलिक ने कहा, “मेरे खिलाफ दर्ज कोई मामला इसके बाद आगे नहीं बढ़ाया गया। यह समझौता हर सरकार ने निभाया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली सरकार भी शामिल थी।”

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उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया के दौरान उनकी कई “बंद कमरे की बैठकों” में वरिष्ठ सरकारी प्रतिनिधियों और अन्य प्रमुख हस्तियों से मुलाकातें हुईं।

2022 में ट्रायल कोर्ट ने यासीन मलिक को आईपीसी की धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना) और यूएपीए की धारा 17 (आतंकी गतिविधियों के लिए धन जुटाना) के तहत दोषी पाकर उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। धारा 121 के तहत न्यूनतम सज़ा उम्रकैद और अधिकतम सज़ा मृत्यु-दंड है।

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हालांकि अदालत ने उस समय कहा था कि यह मामला “दुर्लभतम में दुर्लभ” श्रेणी का नहीं है, इसलिए मौत की सज़ा नहीं दी जा सकती।

अब दिल्ली हाईकोर्ट 28 जनवरी को NIA की इन-कैमरा सुनवाई की मांग पर आगे विचार करेगी।

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