दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को संशोधित कर दिया है, जिसमें पति को अपनी अलग रह रही पत्नी को 25,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने राशि को घटाकर 17,000 रुपये करते हुए स्पष्ट किया कि हालांकि पति की आय का निर्धारण वर्ष 2018-2019 के इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) के आधार पर सही किया गया था, लेकिन पत्नी को पति की कुल आय का आधे से अधिक हिस्सा देना अत्यधिक और अनुचित है।
यह फैसला जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने फैमिली कोर्ट, नॉर्थ-ईस्ट, कड़कड़डूमा कोर्ट्स के 28 फरवरी, 2024 के फैसले को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) पर सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
पक्षकारों का विवाह 13 जुलाई, 2016 को हुआ था। मार्च 2020 में, पत्नी ने दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दायर की और 75,000 रुपये प्रति माह की मांग की। पत्नी का आरोप था कि उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया और अक्टूबर 2018 में ससुराल से निकाल दिया गया। उसने दावा किया कि पति जींस निर्माण के व्यवसाय से लगभग 1,50,000 रुपये प्रति माह कमाता है।
दूसरी ओर, पति ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा कि पत्नी ने अपनी मर्जी से घर छोड़ा है और उसकी (पति की) आय सीमित है। 18 अगस्त, 2021 को फैमिली कोर्ट ने 14,000 रुपये का अंतरिम भरण-पोषण तय किया था। बाद में, गवाहों और सबूतों के आधार पर अंतिम फैसला सुनाते हुए फैमिली कोर्ट ने इसे बढ़ाकर 25,000 रुपये प्रति माह कर दिया।
पक्षकारों की दलीलें
पति की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि भरण-पोषण को 14,000 रुपये से बढ़ाकर 25,000 रुपये करना मनमाना है। उन्होंने कहा कि आय का आकलन निर्धारण वर्ष (AY) 2018-2019 के ITR के आधार पर किया गया था, जिसमें वार्षिक आय 5,18,000 रुपये (लगभग 43,167 रुपये प्रति माह) दिखाई गई थी। पति का कहना था कि उसका व्यवसाय बंद हो चुका है और बाद के वर्षों में उसकी आय में गिरावट आई है।
इसके विपरीत, पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि पति ने अपनी वास्तविक वित्तीय स्थिति को छिपाने के लिए जानबूझकर बैंक स्टेटमेंट की अस्पष्ट प्रतियां जमा कीं। पत्नी का कहना था कि बाद के ITR में दिखाई गई आय में भारी गिरावट केवल भरण-पोषण की देनदारी से बचने के लिए गढ़ी गई थी।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस निर्णय को सही ठहराया जिसमें आय निर्धारण के लिए वर्ष 2018-2019 के ITR पर भरोसा किया गया था। कोर्ट ने कहा कि पति ने जिरह (cross-examination) के दौरान स्वीकार किया था कि यह ITR उसी का है। कोर्ट ने पति द्वारा पेश किए गए बाद के ITR और सैलरी स्लिप को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे विश्वसनीय नहीं हैं और पति अपनी कम आय या किराए के खर्च का कोई ठोस सबूत देने में विफल रहा है।
अंतरिम आदेश से राशि बढ़ाने के पति के तर्क पर कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“अंतरिम भरण-पोषण उस समय उपलब्ध सामग्री के आधार पर प्रथम दृष्टया (prima facie) मूल्यांकन पर दिया जाता है… धारा 125 Cr.P.C. के तहत अंतिम निर्धारण गवाही और सबूतों के बाद ही होता है… इसलिए, पिछला अंतरिम आदेश अंतिम राशि तय करने के लिए बाध्यकारी नहीं था।”
फैसला: ‘अनुरीता वोहरा’ सिद्धांत का पालन
हाईकोर्ट ने पति की मासिक आय लगभग 43,189 रुपये (5,18,268 रुपये वार्षिक के आधार पर) स्वीकार की, लेकिन 25,000 रुपये की भरण-पोषण राशि को अत्यधिक माना। जस्टिस शर्मा ने अनुरीता वोहरा बनाम संदीप वोहरा (2004 SCC OnLine Del 192) मामले में स्थापित सिद्धांत का हवाला दिया।
कोर्ट ने कहा:
“…पति की शुद्ध आय को ‘हिस्सों’ (shares) में विभाजित किया जाना चाहिए, आमतौर पर पति के लिए दो हिस्से और पत्नी के लिए एक हिस्सा रखा जाता है, जहां कोई बच्चे या अन्य आश्रित नहीं हैं…”
इस फॉर्मूले को लागू करते हुए, कोर्ट ने तर्क दिया:
“लगभग 43,189 रुपये की मासिक आय पर, एक हिस्सा लगभग 14,000-15,000 रुपये होगा… 25,000 रुपये प्रति माह का भरण-पोषण देना ITR में दर्शायी गई पति की आय का आधे से अधिक हिस्सा देने के बराबर होगा।”
अंत में, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि “न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए” भरण-पोषण की राशि को संशोधित कर 17,000 रुपये प्रति माह करना उचित होगा।

