आदेश XII नियम 6 CPC | अस्पष्ट स्वीकारोक्तियों पर समरी डिक्री नहीं दी जा सकती, संपत्ति बंटवारे के लिए पूरा ट्रायल जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि मामले में तथ्यों को लेकर गंभीर विवाद मौजूद हैं, तो केवल कथित स्वीकारोक्तियों (Admissions) के आधार पर सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश XII नियम 6 के तहत सीधे डिक्री पारित नहीं की जा सकती। कोर्ट ने कहा कि संपत्ति के बंटवारे जैसे मामलों में जल्दबाजी में फैसला नहीं सुनाया जा सकता जब तक कि संपत्तियों की पहचान और हिस्सेदारी पर स्थिति पूरी तरह साफ न हो।

जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश (Single Judge) के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें वादी (Plaintiff) की समरी डिक्री की मांग को खारिज कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि कानून के तहत स्वीकारोक्ति “स्पष्ट, असंदिग्ध और बिना शर्त” (Unequivocal, Unambiguous, and Unconditional) होनी चाहिए।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील एक बंटवारे के मुकदमे (Partition Suit) से उत्पन्न हुई थी, जो अपीलकर्ता (वादी) द्वारा अपने स्वर्गीय माता-पिता, श्री ओम प्रकाश वर्मा और श्रीमती चंद्र वती की संपत्ति के बंटवारे के लिए दायर किया गया था। शुरुआत में सात संपत्तियों के बंटवारे की मांग की गई थी, लेकिन बाद में इसे गांधी नगर, दिल्ली स्थित तीन संपत्तियों तक सीमित कर दिया गया। वादी ने इन संपत्तियों से होने वाली किराए की आय (अनुमानित 2.5 लाख रुपये प्रति माह) में अपने 1/6 हिस्से का भी दावा किया था।

इस मामले में परिवार की वंशावली (Genealogy) को लेकर गहरा विवाद था। वादी का दावा था कि वे छह वारिसों में से एक हैं, जबकि प्रतिवादियों (Defendants) का कहना था कि परिवार में आठ बच्चे थे। विवाद का एक मुख्य बिंदु मृतक भाई, श्री दिनेश वर्मा की स्थिति को लेकर था। वादी का कहना था कि उनकी मृत्यु निसंतान हुई थी, जबकि प्रतिवादियों का दावा था कि उनका एक बेटा, विक्रम वर्मा है, जिसे मुकदमे में पक्षकार नहीं बनाया गया था।

READ ALSO  फैक्ट्रीयां ऑक्सीजन का इंतजार कर सकती है,लेकिन कोरोना संक्रमित मरीज नही: दिल्ली हाई कोर्ट

वर्ष 2015 में, एकल न्यायाधीश ने कुछ मुद्दों को हटा दिया था क्योंकि वादी यह बताने में विफल रही थीं कि उनके माता-पिता को संपत्ति का मालिकाना हक कैसे मिला। बाद में, 2024 में प्रतिवादियों ने कुछ त्याग विलेख (Relinquishment Deeds) जमा किए और कहा कि वे ‘मौखिक पारिवारिक समझौते’ की दलील पर जोर नहीं दे रहे हैं। इसी आधार पर वादी ने आदेश XII नियम 6 CPC के तहत आवेदन दायर किया और तर्क दिया कि दस्तावेजों में उनके अधिकारों की स्पष्ट स्वीकारोक्ति है।

पक्षों की दलीलें

अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि प्रतिवादियों द्वारा 2024 में दिए गए हलफनामे और 9 अक्टूबर 2020 के पंजीकृत त्याग विलेख, माता-पिता के स्वामित्व और वादी के हिस्से की स्पष्ट स्वीकारोक्ति हैं। वकील ने दलील दी कि “किसी एक सह-वारिस द्वारा स्वामित्व का प्रमाण सभी सह-वारिसों पर बाध्यकारी होता है,” इसलिए स्वतंत्र रूप से स्वामित्व साबित करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए थी।

दूसरी ओर, प्रतिवादियों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि संपत्तियों के क्षेत्रफल (250 वर्ग गज बनाम 165 वर्ग गज), किराए की मात्रा और उत्तराधिकार के प्रश्न पर अभी भी गंभीर मतभेद हैं। उन्होंने तर्क दिया कि त्याग विलेख दाखिल करने से 2015 के आदेश में बताई गई कमियां (स्वामित्व के मूल दस्तावेजों की कमी) दूर नहीं हो जातीं।

READ ALSO  दिल्ली की अदालत ने "विलंबित" आवेदन पर पंजाब पुलिस को केटीएफ गुर्गों की ट्रांजिट रिमांड देने से इंकार कर दिया

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

खंडपीठ ने रिकॉर्ड की जांच करने पर पाया कि मुकदमे के बुनियादी पहलुओं पर स्पष्टता का अभाव है। कोर्ट ने देखा कि पक्षकार संपत्तियों की पहचान, विस्तार और प्रकृति को लेकर एकमत (Ad idem) नहीं हैं।

स्वीकारोक्ति पर फैसले के कानूनी मानक को स्पष्ट करते हुए बेंच ने कहा:

“यह स्थापित कानून है कि CPC के आदेश XII नियम 6 के तहत डिक्री के लिए, जिस स्वीकारोक्ति पर भरोसा किया जा रहा है, वह स्पष्ट, असंदिग्ध और बिना किसी शर्त के होनी चाहिए… कोर्ट को यह भी संतुष्ट होना चाहिए कि निर्णय के लिए तथ्य या कानून का कोई महत्वपूर्ण मुद्दा शेष नहीं है।”

हाईकोर्ट ने निम्नलिखित विशिष्ट तथ्यात्मक विवादों को रेखांकित किया:

  • संपत्ति संख्या X/61-87 का आकार और विवरण।
  • किराए की आय का अस्तित्व और उसकी सीमा।
  • कथित वारिस, विक्रम वर्मा की स्थिति।
  • संपत्ति संख्या X/2302 के हिस्सों पर कब्जा।

पीठ ने कहा कि बंटवारे के मुकदमों में शीर्षक (Title), सीमाओं और कब्जे की पूरी जांच आवश्यक होती है, जिसका निपटारा सरसरी तौर पर (Summary Adjudication) नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसे बिना किसी शर्त के स्वीकार न किया गया हो।

READ ALSO  HC permits Prannoy, Radhika Roy to travel abroad, says there's no flight risk

कोर्ट ने इस सिद्धांत पर जोर दिया कि “वादी को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए” (Plaintiff has to succeed on his own feet) और कहा कि संपत्ति के विवरण में विसंगतियां और वारिसों की संख्या पर विवाद को देखते हुए समरी डिक्री नहीं दी जा सकती।

निर्णय

हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और एकल न्यायाधीश के निष्कर्ष से सहमति जताई कि यह मामला आदेश XII नियम 6 CPC के तहत डिक्री के मानदंडों को पूरा नहीं करता। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“अदालत इस बात से संतुष्ट है कि मामले में महत्वपूर्ण तथ्यात्मक विवाद बने हुए हैं, जिनके लिए पूर्ण ट्रायल (Full Trial) आवश्यक है, जब तक कि प्रक्रियात्मक कानून के अनुसार इनका समाधान नहीं हो जाता।”

हालांकि, न्याय के हित में, बेंच ने अपीलकर्ता को छूट दी कि यदि वह संपत्तियों के सटीक आकार, अपने हिस्से के आधार और किराए की आय के स्रोत के बारे में “विशिष्ट और स्पष्ट स्वीकारोक्तियों” की पहचान कर सकती हैं, तो वे आदेश XII नियम 6 CPC के तहत एक विस्तृत आवेदन दायर कर सकती हैं।

केस डीटेल्स:

  • केस टाइटल: अनु (मृतक) जरिए एलआर बनाम सुरेश वर्मा (मृतक जरिए एलआरएस) व अन्य
  • केस नंबर: FAO(OS) 151/2025
  • कोरम: जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर
  • साइटेशन: 2025:DHC:11289-DB

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles