दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उम्मीदवार चयन प्रक्रिया शुरू होने के बाद अपने ऑनलाइन आवेदन पत्र में ऐसी गलतियों को सुधारने की मांग नहीं कर सकते हैं जो उनकी मूलभूत पात्रता (Eligibility) को प्रभावित करती हैं। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि आवेदन पत्र को सावधानीपूर्वक भरना उम्मीदवारों का कर्तव्य है।
हाईकोर्ट ने एक उम्मीदवार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसने दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल (कार्यकारी) के पद के लिए ऊंचाई (Height) में छूट की मांग की थी। कोर्ट ने माना कि लिखित परीक्षा और फिजिकल एंड्योरेंस एंड मेजरमेंट टेस्ट (PEMT) पास करने के बाद, आवेदन में सुधार की अनुमति नहीं दी जा सकती, खासकर तब जब गलती पात्रता के मानदंडों से जुड़ी हो।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता निशा खान ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण, नई दिल्ली के 14 जुलाई, 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। ट्रिब्यूनल ने उनके आवेदन पत्र में सुधार की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके जरिए वह “पुलिस कर्मियों के वार्ड” (Ward of Police Personnel) का दर्जा मांग रही थीं।
कर्मचारी चयन आयोग (SSC) ने 1 अगस्त, 2020 को दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। याचिकाकर्ता ने 6 सितंबर, 2020 को अपना ऑनलाइन आवेदन जमा किया। उनका कहना था कि साइबर कैफे में नेटवर्क की समस्या के कारण अनजाने में उनसे निम्नलिखित गलतियां हो गईं:
- कॉलम नंबर 15 (विभागीय उम्मीदवार) में ‘नहीं’ के बजाय ‘हां’ टिक हो गया।
- कॉलम नंबर 16 (सेवारत/सेवानिवृत्त/मृत पुलिस कर्मियों के वार्ड) में ‘हां’ के बजाय ‘नहीं’ टिक हो गया।
याचिकाकर्ता ने लिखित परीक्षा पास की और 26 जुलाई, 2021 को PEMT के लिए उपस्थित हुईं। उन्होंने प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया कि उनके पिता 1988 से दिल्ली पुलिस में सहायक उप निरीक्षक (ASI) के रूप में कार्यरत हैं। माप के समय उनकी ऊंचाई 154.5 सेमी (लगभग 156 सेमी) पाई गई। यद्यपि वास्तविक आवश्यकता 157 सेमी थी, उन्हें शुरू में पुलिस कर्मियों के वार्ड के लिए उपलब्ध छूट देते हुए योग्य घोषित कर दिया गया।
हालांकि, बाद में अधिकारियों ने ऑनलाइन आवेदन में विसंगति पाई जहां उन्होंने कॉलम नंबर 16 में ‘नहीं’ भरा था। इसके बाद, 23 अगस्त, 2021 को प्रतिवादियों ने उन्हें ऊंचाई मानकों में अयोग्य घोषित कर दिया, क्योंकि उन्होंने अपने आवेदन पत्र में संबंधित श्रेणी का दावा नहीं किया था।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता का पक्ष: याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि यह गलती “सद्भावनापूर्ण और लिपिकीय” (Bona fide and clerical) थी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता के पास निजी कंप्यूटर नहीं था और वेबसाइट पर भारी लोड के दौरान उन्होंने साइबर कैफे कर्मियों पर भरोसा किया।
- दलील दी गई कि याचिकाकर्ता ने PEMT चरण में अपने पिता के रोजगार प्रमाण पत्र सहित सभी मूल दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।
- वकील ने सुप्रीम कोर्ट के वशिष्ठ नारायण कुमार बनाम बिहार राज्य और अन्य (2024) और दिल्ली हाईकोर्ट के अजय कुमार मिश्रा बनाम भारत संघ और अन्य (2016) के फैसलों का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि कानून तुच्छ मामलों (Trifles) पर ध्यान नहीं देता और उम्मीदवारों को मामूली गलतियों के लिए दंडित नहीं किया जाना चाहिए।
- यह भी तर्क दिया गया कि कॉलम नंबर 15 अनावश्यक था क्योंकि कांस्टेबल पद के लिए कोई विभागीय उम्मीदवार नहीं हो सकता।
प्रतिवादियों का पक्ष: प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि परीक्षा नोटिस में उम्मीदवारों को स्पष्ट रूप से सावधानीपूर्वक फॉर्म भरने की सलाह दी गई थी।
- उन्होंने विज्ञापन के पैरा 20(8) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था: “आवेदन पत्र जमा होने के बाद किसी भी विवरण में परिवर्तन/सुधार के अनुरोध पर किसी भी परिस्थिति में विचार नहीं किया जाएगा।”
- यह तर्क दिया गया कि सही विवरण भरने की जिम्मेदारी उम्मीदवार की है। बाद के चरण में बदलाव की अनुमति देने से अव्यवस्था फैल सकती है, क्योंकि SSC करोड़ों उम्मीदवारों की भर्ती प्रक्रिया संभालता है।
- उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग बनाम संदीप श्रीराम वराडे और अन्य (2019) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अदालतें विज्ञापन की स्पष्ट शर्तों के ऊपर फैसला नहीं सुना सकती हैं।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों को खारिज कर दिया और ट्रिब्यूनल द्वारा पूजा देवी बनाम एसएससी और अन्य के मामले में दिए गए निर्णय का समर्थन किया। कोर्ट ने कहा कि उम्मीदवारों को “अपनी आंखें खुली रखकर” फॉर्म भरना चाहिए था।
उम्मीदवारों के कर्तव्य पर: कोर्ट ने टिप्पणी की:
“किसी भी परीक्षा के उम्मीदवार से अपेक्षा की जाती है कि वह ऑनलाइन आवेदन को अंतिम रूप से जमा करने से पहले विवरणों को सत्यापित करे और आवश्यक सुधार करे। किसी उम्मीदवार को यह कहने के लिए कोर्ट जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उसे अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब वह अर्हता प्राप्त करने में विफल रहा। सुधार के लिए ऐसे दावे स्वीकार्य नहीं हैं।”
“मामूली गलती” और “पात्रता” में अंतर: बेंच ने वर्तमान मामले को याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत वशिष्ठ नारायण कुमार और अजय कुमार मिश्रा के फैसलों से अलग बताया। कोर्ट ने नोट किया कि उन मामलों में गलतियां केवल जन्म तिथि से संबंधित टंकण त्रुटियां (Typographical errors) थीं, जिनका उम्मीदवार की पात्रता पर कोई असर नहीं पड़ा था।
इसके विपरीत, वर्तमान मामले में कोर्ट ने कहा:
“जहां तक वर्तमान मामले का संबंध है, कॉलम 16 का उत्तर याचिकाकर्ता की पात्रता के लिए मौलिक था क्योंकि यह उन्हें ऊंचाई में छूट का हकदार बनाता, जिसकी उन्हें निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के लिए आवश्यकता थी।”
विज्ञापन की शर्तों की पवित्रता: सुप्रीम कोर्ट के मोहित कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) के फैसले पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि यदि विज्ञापन की शर्तें स्पष्ट हैं, तो भर्ती प्राधिकरण अपनी आवश्यकताओं का सबसे अच्छा न्यायाधीश है। कोर्ट ने कहा कि शर्तों में स्पष्ट रूप से जमा करने के बाद सुधारों को प्रतिबंधित किया गया था।
कॉलम की अनावश्यकता पर: कॉलम नंबर 15 के अनावश्यक होने के तर्क पर कोर्ट ने कहा:
“कॉलम ’15’ की प्रासंगिकता तय करना प्रतिवादी का काम था, और चयन प्रक्रिया में भाग लेने के बाद, याचिकाकर्ता आवेदन पत्र के किसी भी क्षेत्र को अनावश्यक या महत्वहीन होने का दावा नहीं कर सकता।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि भर्ती प्राधिकरण को याचिकाकर्ता की अपनी गलतियों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने नोट किया कि याचिकाकर्ता को राहत देने से उन अन्य समान रूप से स्थित उम्मीदवारों के साथ असमानता होगी जिन्हें इसी तरह की गलतियों के लिए बाहर कर दिया गया था।
खंडपीठ ने आदेश दिया:
“उपरोक्त कारणों से, वर्तमान रिट याचिका गुण-दोष रहित होने के कारण खारिज की जाती है। विद्वान न्यायाधिकरण (Tribunal) के आक्षेपित आदेश को बरकरार रखा जाता है।”
केस विवरण
- केस शीर्षक: निशा खान बनाम दिल्ली पुलिस और अन्य
- केस नंबर: W.P.(C) 12698/2023 & CM APPL. 50157/2023
- कोरम: जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन
- साइटेशन: 2025:DHC:11194-DB

