दिल्ली हाईकोर्ट ने ‘सीरियल लिटिगेंट’ पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया, कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग पर सख्त; MCD को अवैध निर्माण पर कार्रवाई का निर्देश

दिल्ली हाईकोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करने और ‘गलत इरादों’ (Oblique Motives) से याचिका दायर करने के लिए एक याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ‘सीरियल लिटिगेंट’ (आदतन मुकदमेबाज) करार दिया। हालांकि, जस्टिस मिनी पुष्करणा की पीठ ने याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी, लेकिन साथ ही दिल्ली नगर निगम (MCD) को निर्देश दिया कि वह संपत्ति में मौजूद अवैध निर्माण के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई करे।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, श्री हरदीप सिंह हंसपाल ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर रोहिणी, सेक्टर-15 स्थित संपत्ति संख्या C-6/85 में प्रतिवादी संख्या 3 द्वारा किए जा रहे कथित अवैध निर्माण को गिराने के लिए एमसीडी को निर्देश देने की मांग की थी।

सुनवाई के दौरान, एमसीडी के वकील ने कोर्ट को सूचित किया कि यह याचिकाकर्ता द्वारा मुकदमेबाजी का “पांचवां दौर” है। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने इसी क्षेत्र में अलग-अलग संपत्तियों के खिलाफ पहले भी कई याचिकाएं दायर की हैं। एमसीडी ने याचिकाकर्ता की पिछली मुकदमों का विवरण भी पेश किया:

  1. पहली याचिका: 7 अप्रैल, 2025 को रोहिणी सेक्टर-15 की संपत्ति संख्या C-6/44 के संबंध में दायर की गई थी, लेकिन याचिकाकर्ता ने बाद में इसे आगे नहीं बढ़ाया।
  2. दूसरी याचिका: संपत्ति संख्या C-7/38 के संबंध में दायर की गई। बाद में, याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए इसे आगे न बढ़ाने की बात कही कि मालिक/कब्जाधारी ने स्वयं अवैध निर्माण हटाना शुरू कर दिया है।
  3. तीसरी याचिका: संपत्ति संख्या C-8/5 के खिलाफ दायर डब्ल्यूपी (सी) 6793/2025। इसका निपटारा 20 मई, 2025 को इस नोट के साथ किया गया कि एमसीडी ने अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी है।
  4. चौथी याचिका: 20 मई, 2025 के आदेश की अवमानना का आरोप लगाते हुए एक अवमानना याचिका दायर की गई थी। इसे आदेश के चार दिन के भीतर ही दायर किया गया था। बाद में याचिकाकर्ता ने इसे भी यह कहते हुए वापस ले लिया कि मालिक ने खुद निर्माण हटाना शुरू कर दिया है।
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मौजूदा याचिका संपत्ति संख्या C-6/85 के संबंध में पांचवीं ऐसी याचिका थी।

पक्षों की दलीलें

एमसीडी के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता कई संपत्तियों के संबंध में याचिकाएं दायर करता है लेकिन बाद में उनकी पैरवी नहीं करता। उन्होंने कहा, “अन्य याचिकाएं भी हो सकती हैं… जिसके कारण उन्हें पूरी जानकारी नहीं है।”

एमसीडी के रुख का समर्थन करते हुए, प्रतिवादी संख्या 3 (निजी पक्ष) के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता एक “ब्लैकमेलर” है और उसने उक्त क्षेत्र में कई संपत्तियों के संबंध में विभिन्न याचिकाएं दायर की हैं।

इन दलीलों का सामना करते हुए, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि वह मौजूदा रिट याचिका को वापस लेना चाहते हैं।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

जस्टिस मिनी पुष्करणा ने पाया कि याचिकाकर्ता एक “सीरियल लिटिगेंट” प्रतीत होता है, जो विभिन्न संपत्तियों के खिलाफ याचिकाएं दायर करता है, लेकिन इस आधार पर उन पर जोर नहीं देता कि मालिकों ने खुद निर्माण हटाना शुरू कर दिया है।

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कोर्ट ने टिप्पणी की:

“जाहिर है, याचिकाकर्ता का मकसद नेकनीयत (Bonafide) नहीं लगता है और याचिकाएं परोक्ष उद्देश्यों (Oblique Motives) से दायर की गई प्रतीत होती हैं। यह कोर्ट पहले ही कई फैसलों में यह स्पष्ट कर चुका है कि कोई भी पक्ष परोक्ष उद्देश्यों के लिए याचिका दायर करके कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं कर सकता।”

कोर्ट ने अपने पिछले फैसले मनोरमा सक्करवाल बनाम दिल्ली नगर निगम व अन्य (Cont. Cas (C) 1051/2025) का हवाला देते हुए दोहराया कि रिट कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ता को “साफ हाथों” (Clean Hands) से आना चाहिए। उस फैसले का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा:

“इस कोर्ट के समक्ष प्रकट किए गए तथ्य बहुत गंभीर प्रकृति के हैं और किसी भी पक्ष को गुप्त उद्देश्यों के लिए और किसी अन्य पक्ष से अवैध निर्माण के आधार पर पैसे वसूलने के उद्देश्य से कोर्ट की प्रक्रिया का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”

याचिकाकर्ता के आचरण पर जस्टिस पुष्करणा ने आगे कहा:

“इसके अलावा, याचिकाएं दायर करना और फिर उनकी पैरवी न करना, याचिकाकर्ता का यह आचरण भी विश्वास नहीं जगाता है और यह इस तथ्य का स्पष्ट संकेत है कि याचिकाकर्ता द्वारा याचिकाएं स्व-सेवा और अस्वीकार्य उद्देश्यों के लिए दायर की गई हैं… यह कोर्ट किसी भी ऐसी याचिका पर विचार नहीं करेगा, जो बाहरी या स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों के लिए दायर की गई हो।”

निर्णय

हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को रिट याचिका वापस लेने की अनुमति तो दे दी, लेकिन उस पर 50,000 रुपये (पचास हजार रुपये) का जुर्माना (Cost) लगाया। यह राशि चार सप्ताह के भीतर दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (D.H.C. B.A.) के लागत खाते में जमा करनी होगी।

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हालांकि, अवैध निर्माण के मुद्दे पर कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यद्यपि वह कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देगा, लेकिन अवैध निर्माण पर कार्रवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने एमसीडी की इस दलील का संज्ञान लिया कि “संबंधित संपत्ति में अनधिकृत निर्माण को पहले ही बुक (Booked) किया जा चुका है।”

मामले का समापन करते हुए, कोर्ट ने निर्देश दिया:

“तदनुसार, एमसीडी को कानून के अनुसार उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद संपत्ति में मौजूद अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।”

जुर्माने के भुगतान के अनुपालन के लिए मामले को 9 जनवरी, 2026 को संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है।

केस डीटेल्स:

  • केस टाइटल: श्री हरदीप सिंह हंसपाल बनाम दिल्ली नगर निगम व अन्य
  • केस नंबर: W.P.(C) 18223/2025 & CM APPL. 75329/2025
  • कोरम: माननीय जस्टिस मिनी पुष्करणा
  • साइटेशन: 2025:DHC:10778

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