दिल्ली हाईकोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) द्वारा दायर उन रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (CMM), रोहिणी कोर्ट्स द्वारा बैंक के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को चुनौती दी गई थी। यह मामला एम/एस पी.पी. ज्वैलर्स प्राइवेट लिमिटेड से सार्वजनिक धन की वसूली से जुड़ा था।
हाईकोर्ट ने एसबीआई की याचिका को “अविचारित” और “अत्यधिक विलंबग्रस्त” बताते हुए कहा कि “कोई भी बैंक कानूनी वसूली प्रक्रिया को प्रक्रियागत खामियों के बहाने बाधित या प्रभावित नहीं कर सकता।”
मामले की पृष्ठभूमि
एसबीआई ने एम/एस पी.पी. ज्वैलर्स प्राइवेट लिमिटेड को वित्तीय सुविधाएं प्रदान की थीं। कंपनी ने विभिन्न ऋण लिए थे, जो कई गारंटी और बंधक समझौतों के तहत सुरक्षित किए गए थे। लेकिन, जब उधारकर्ता ने भुगतान में चूक की, तो उसे 31 मार्च 2016 को गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) घोषित कर दिया गया।

इसके बाद, एसबीआई ने 2002 के सरफेसी अधिनियम की धारा 13(2) के तहत मांग नोटिस जारी किया। 2018 में, बैंक और उधारकर्ता के बीच 145 करोड़ रुपये की एकमुश्त निपटान (OTS) योजना बनी, लेकिन सिर्फ 29.6 करोड़ रुपये का भुगतान होने के बाद यह समझौता रद्द कर दिया गया। इसके बाद 96 करोड़ रुपये का एक और OTS समझौता किया गया, लेकिन इसे भी उधारकर्ता ने पूरा नहीं किया।
मई 2022 में, एसबीआई ने सरफेसी अधिनियम की धारा 14 के तहत सीएमएम के समक्ष गिरवी रखी संपत्तियों का कब्जा लेने के लिए आवेदन किया। लेकिन, एसबीआई के प्रतिनिधियों की बार-बार अनुपस्थिति और सुनवाई में देरी के कारण, 4 जून 2022 को सीएमएम ने याचिका को अनुपस्थिति के आधार पर खारिज कर दिया।
आदेश में एसबीआई की भूमिका को लेकर कड़ी टिप्पणियां की गईं, जिसमें संकेत दिया गया कि बैंक उधारकर्ता के साथ मिलीभगत कर सकता है।
मुख्य कानूनी मुद्दे और पक्षकारों की दलीलें
एसबीआई की दलीलें:
- सीएमएम को इस तरह की प्रतिकूल टिप्पणियां देने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि सरफेसी अधिनियम की धारा 14 के तहत मजिस्ट्रेट की भूमिका केवल प्रक्रियागत होती है, न कि निर्णयात्मक।
- इन टिप्पणियों से बैंक की प्रतिष्ठा को “अपूरणीय क्षति” हुई है, और इन्हें अन्य मामलों में एसबीआई के खिलाफ इस्तेमाल किया जा रहा है।
- एसबीआई ने “आर.डी. जैन एंड कंपनी बनाम कैपिटल फर्स्ट लिमिटेड [(2023) 1 SCC 675]” का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मजिस्ट्रेट की भूमिका केवल प्रक्रिया संबंधी होती है।
विरोधी पक्ष (इंटरवेनर्स) की दलीलें:
- एसबीआई की याचिका “मिलीभगत” और “रणनीतिक देरी” का हिस्सा थी, जिससे कुछ उधारकर्ताओं को फायदा हुआ।
- एफआईआर (संख्या 106/2022) के तहत जांच चल रही है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि एसबीआई अधिकारियों की मिलीभगत से संपत्तियां ठिकाने लगाई गईं।
- एनसीएलटी (राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण) द्वारा IBC प्रक्रिया को बहाल करने की अनुमति दिए जाने के बावजूद, एसबीआई ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिससे उसकी “दुर्भावनापूर्ण मंशा” उजागर होती है।
कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियां
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने एसबीआई की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सीएमएम की टिप्पणियां एसबीआई के आचरण को देखते हुए पूरी तरह न्यायसंगत थीं।
हाईकोर्ट ने कहा:
“यह एक विलासितापूर्ण मुकदमेबाजी है, जिसमें याचिकाकर्ता बैंक एक निर्दोष आदेश को चुनौती दे रहा है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा को कोई अपूरणीय क्षति नहीं हुई है।”
कोर्ट ने एसबीआई की ढिलाई और बार-बार की गई सुनवाई स्थगन को गंभीरता से लेते हुए कहा कि बैंक सार्वजनिक धन की जिम्मेदारी के प्रति जवाबदेह है।
“यह आवश्यक नहीं है कि सीएमएम केवल मूकदर्शक बनकर बैठे और किसी भी पक्ष को सरफेसी अधिनियम के तहत कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने दे, खासकर जब अदालतों में मामलों का अत्यधिक बोझ हो।”
महत्वपूर्ण टिप्पणियां:
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मजिस्ट्रेट का कार्य सिर्फ बैंक के आवेदन को स्वीकृत करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि उचित प्रक्रिया का पालन हो।
- बैंक की जिम्मेदारी केवल वसूली प्रक्रिया शुरू करने तक सीमित नहीं है, बल्कि उसे गंभीरता से इसका पालन भी करना चाहिए।
- एसबीआई की सुनवाई स्थगित करने की प्रवृत्ति उसकी मंशा पर सवाल खड़े करती है।
- ऋण वसूली में देरी न केवल बैंकिंग कानूनों की प्रभावशीलता को कमजोर करती है, बल्कि जमाकर्ताओं और वित्तीय संस्थानों के प्रति विश्वास को भी हिलाती है।
- 31.41 करोड़ रुपये की सार्वजनिक राशि के दांव पर होने के कारण, बैंक को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए थी।
अंततः, हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि न्यायालय प्रक्रिया में देरी का दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं करेगा।
“लोक क्षेत्र के बैंकों को यह समझना चाहिए कि ऋण वसूली मामलों में उनकी कार्यप्रणाली पर सख्त निगरानी रखी जाएगी, और लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट संदेश दिया कि बैंकों को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग नहीं करने दिया जाएगा। अदालतों की कार्यवाही को “रणनीतिक रूप से टालने” की प्रवृत्ति बैंकों के खिलाफ जाएगी, खासकर जब मामला सार्वजनिक धन की सुरक्षा से जुड़ा हो।
नतीजतन, हाईकोर्ट ने एसबीआई की याचिकाएं खारिज कर दीं।