भरण-पोषण मामले में पति की छुपाई गई आमदनी साबित करने के लिए पत्नी गवाह के रूप में बैंक अधिकारियों को बुला सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसमें पत्नी की उस अर्जी को खारिज कर दिया गया था, जिसमें उसने अपने पति की छुपाई गई आय और असली आर्थिक स्थिति को साबित करने के लिए बैंक अधिकारियों और वित्तीय दस्तावेजों को तलब करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी को यह अधिकार है कि वह ऐसे साक्ष्य पेश कर सके जो भरण-पोषण तय करने में सहायक हों।

यह फैसला जस्टिस रविंदर दूदेजा ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 और संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर याचिका पर सुनाया। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने धारा 311 CrPC के तहत दायर आवेदन को अंतिम बहस के चरण में खारिज कर गलती की है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जो साक्ष्य वह रिकॉर्ड पर लाना चाहती हैं, वे सीधे तौर पर भरण-पोषण के निर्धारण से संबंधित हैं और उन्हें केवल प्रक्रिया के आधार पर दरकिनार नहीं किया जा सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

विवादित पक्षों का विवाह वर्ष 2012 में हुआ था। पत्नी का आरोप था कि शादी के तुरंत बाद ही उसे घरेलू हिंसा का शिकार बनाया गया और बाद में पति ने उसे छोड़ दिया। उसका दावा था कि उसका पति, जो एक वरिष्ठ वित्तीय पद पर कार्यरत है, जानबूझकर अपनी आय को गलत तरीके से दर्शा रहा है, संपत्ति की बिक्री से प्राप्त राशि को परिवार के सदस्यों को ट्रांसफर कर रहा है और भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बच रहा है।

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इन आरोपों को साबित करने के लिए महिला ने CrPC की धारा 311 के तहत कई बैंक अधिकारियों, नगर निगम और वित्तीय प्राधिकरणों को समन करने के लिए आवेदन दायर किया, ताकि यह दिखाया जा सके कि पति और उसके परिजनों के खातों में कितनी धनराशि ट्रांसफर हुई और किन संपत्तियों की खरीद-फरोख्त हुई।

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हालांकि प्रारंभ में फैमिली कोर्ट ने उन्हें साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दी थी, लेकिन 13 मार्च 2024 को दायर उस अर्जी को खारिज कर दिया गया जिसमें नोएडा की एक संपत्ति की बिक्री से प्राप्त ₹5.25 लाख को पति की मां के खाते में ट्रांसफर करने के आरोप को साबित करने के लिए गवाहों को बुलाने की मांग की गई थी। इसके बाद मामला अंतिम बहस के लिए निर्धारित कर दिया गया।

हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ

जस्टिस दूदेजा ने कहा कि धारा 311 CrPC अदालतों को किसी भी चरण में गवाहों को बुलाने, पुनः बुलाने या पुनः परीक्षण करने की व्यापक विवेकाधिकार और अनिवार्य शक्ति प्रदान करती है। कोर्ट ने Zahira Habibullah Sheikh बनाम गुजरात राज्य और Natasha बनाम CBI मामलों का हवाला देते हुए कहा कि यह प्रावधान न्याय सुनिश्चित करने और अन्याय से बचने के लिए बनाया गया है।

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कोर्ट ने कहा, “धारा 311 प्रक्रियात्मक तकनीकीताओं पर न्याय के हित में वरीयता रखती है।”

हाईकोर्ट ने रजनीश बनाम नेहा मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जब भी किसी पक्ष द्वारा आमदनी छुपाने का आरोप हो, तो न्यायालयों को उस पक्ष की आर्थिक स्थिति का यथार्थ मूल्यांकन करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि महिला को संपत्ति की बिक्री की धनराशि के डायवर्जन और शक्ति नगर में खरीदी गई संपत्ति से उसके संबंध को साबित करने का अवसर न देना, भरण-पोषण कार्यवाही के उद्देश्य को ही विफल कर देगा।

“वैवाहिक मुकदमे, खासकर जब आर्थिक निर्भरता और आमदनी छिपाने के आरोप हों, एक संवेदनशील और व्यावहारिक दृष्टिकोण की मांग करते हैं। जिन दस्तावेजों और गवाहों को लाने की बात की जा रही है वे न तो गौण हैं और न ही अप्रासंगिक, बल्कि वे सीधे तौर पर भरण-पोषण निर्धारण से जुड़े हुए हैं, जो जीवन यापन का प्रश्न है,” हाईकोर्ट ने कहा।

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हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की उस राय को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि महिला की अर्जी मुकदमे को लंबा खींचने की मंशा से दायर की गई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अंतिम बहस के चरण में भी धारा 311 का प्रयोग किया जा सकता है और प्रक्रिया का इतिहास न्यायसंगत अवसर को रौंद नहीं सकता।

निर्देश

याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने 7 जून 2024 को फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि महिला को संबंधित रिकॉर्ड के साथ गवाहों को बुलाने की अनुमति दी जाए। इसके साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि शेष कार्यवाही को दोनों पक्षों के पूर्ण सहयोग से तीन महीने के भीतर प्राथमिकता के साथ पूर्ण किया जाए।

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