दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में पेड़ों की कटाई और प्रतिरोपण से संबंधित मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई सख्त निर्देश जारी किए हैं। न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा कि स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में जीने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।
ये निर्देश एक अवमानना याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किए गए, जिसमें पिछली अदालती व्यवस्थाओं के उल्लंघन और पेड़ों के संरक्षण में ढिलाई का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने पहले यह भी नोट किया था कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में स्वीकृत परियोजनाओं के तहत हर घंटे एक पेड़ काटा जा रहा है।
पर्यावरण सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए हाईकोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश दिए:

🔹 योजना स्तर पर ही वृक्ष अधिकारी की भागीदारी अनिवार्य
किसी भी परियोजना में पेड़ों की कटाई या प्रतिरोपण की योजना बनाते समय ही उप वन संरक्षक (DCF) या वृक्ष अधिकारी से परामर्श लिया जाए, न कि परियोजना स्वीकृत होने के बाद।
🔹 प्रतिपूरक वृक्षारोपण के मानक निर्धारित
प्रतिपूरक वृक्षारोपण के लिए लगाए जाने वाले पेड़ कम से कम 6 फीट ऊंचे हों, उनकी नर्सरी आयु 5 वर्ष हो और कॉलर गिर्थ (तने की मोटाई) कम से कम 10 सेंटीमीटर हो।
🔹 रखरखाव की शपथ-पत्र अनिवार्य
पेड़ काटने की अनुमति मांगने वाले आवेदक को पांच वर्षों तक प्रतिपूरक वृक्षों की देखभाल, सिंचाई और संरक्षण की जिम्मेदारी लेते हुए शपथ-पत्र देना होगा।
🔹 प्रतिरोपण में सीमाएं तय
प्रतिरोपण हेतु चयनित पेड़ों की अत्यधिक छंटाई नहीं की जाए। साथ ही, प्रतिरोपण के निर्णय में पेड़ की उम्र, स्थानीय पारिस्थितिकी और जीवित रहने की संभावना को ध्यान में रखा जाए।
🔹 परियोजना के प्रभाव का मूल्यांकन आवश्यक
वृक्ष अधिकारी को संबंधित परियोजना प्रस्तावक की पूर्व की सभी याचिकाओं, परियोजना के पर्यावरणीय प्रभाव और वैकल्पिक स्थलों की उपलब्धता जैसे कारकों पर विचार करना होगा, न कि केवल उस भूखंड पर।
🔹 दस्तावेज़ीकरण और निगरानी
SOP का क्रियान्वयन ‘दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम’ के अनुरूप हो। स्वीकृति के बाद DCF द्वारा निगरानी की जाए। वृक्ष अधिकारी को प्रत्येक पेड़ का निरीक्षण करना होगा और निर्णय के समर्थन या अस्वीकृति के कारणों के साथ फोटोग्राफिक साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे।
कोर्ट ने अप्रैल 2022 में अपने एक आदेश में स्पष्ट किया था कि पेड़ काटने के हर निर्णय को लिखित रूप में औचित्य सहित प्रस्तुत करना होगा, जिसमें निरीक्षण रिपोर्ट और तस्वीरें शामिल हों। मौजूदा आदेश इस बात को दोहराता है कि अधिकारी पर्यावरणीय चिंताओं की अनदेखी न करें और हर निर्णय की जवाबदेही तय हो।
कोर्ट इस मामले में अधिकारियों की अनुपालन स्थिति की निगरानी करना जारी रखेगा और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े इन दिशा-निर्देशों की प्रभावशीलता पर आगे सुनवाई करेगा।