दिल्ली हाईकोर्ट कार्यकर्ता नदीम खान की उस याचिका पर 21 अप्रैल को सुनवाई करेगा, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ दर्ज ‘विरोध भड़काने’ के मामले में ज़मानत की शर्तों के तहत लगाई गई यात्रा प्रतिबंधों में ढील की मांग की है। याचिका में विशेष रूप से उस शर्त को चुनौती दी गई है, जिसके अनुसार उन्हें दिल्ली से बाहर जाने के लिए अदालत की अनुमति लेनी पड़ती है।
इस याचिका को पहले न्यायमूर्ति रवींद्र दुडेचा के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, जिन्होंने इसे न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की अदालत में स्थानांतरित कर दिया। न्यायमूर्ति सिंह ने ही 11 दिसंबर 2024 को यह शर्त लगाई थी।
खान के वकीलों का तर्क है कि वह ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ के राष्ट्रीय सचिव हैं और उन्हें अपने संगठन के कार्यों के लिए दिल्ली से बाहर यात्रा करनी पड़ती है। ऐसे में यह शर्त उनके संवैधानिक अधिकारों और कार्यों में बाधा बन रही है।

खान पर एक विवादास्पद वीडियो के सोशल मीडिया पर प्रसार के बाद सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी। पुलिस का कहना है कि यह वीडियो कभी भी हिंसा भड़का सकता है और सार्वजनिक शांति को बाधित कर सकता है।
हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट पहले ही आदेश दे चुका है कि पुलिस उन्हें गिरफ़्तार करने से पहले सात दिन की नोटिस दे, क्योंकि खान ने जांच में सहयोग देने की बात कही है।
शाहीन बाग थाने में 30 नवंबर 2024 को दर्ज एफआईआर के तहत खान की ओर से दलील दी गई है कि पुलिस की जांच बेहद व्यापक और अनावश्यक रूप से टोह लेने वाली (“roving and fishing inquiry”) है, जिसके ठोस आधार नहीं हैं।
वहीं पुलिस का कहना है कि खान की गतिविधियाँ एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य एक विशेष समुदाय को वर्तमान सरकार का शिकार दिखाकर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना है। पुलिस की स्थिति रिपोर्ट में इसे जन व्यवस्था के खिलाफ साज़िश करार दिया गया है।