दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को बाटला हाउस क्षेत्र में डीडीए द्वारा जारी किए गए तोड़फोड़ नोटिस को चुनौती देने वाली सात निवासियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए 10 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति रजनीश कुमार गुप्ता ने यह अंतरिम आदेश पारित करते हुए मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई को समान प्रकृति की अन्य याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध की।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता फ़हद खान ने तर्क दिया कि डीडीए और दिल्ली सरकार ने चिह्नित क्षेत्र से बाहर की संपत्तियों को भी बिना कोई व्यक्तिगत नोटिस दिए “मनमाने ढंग से निशाना बनाया” है। याचिका में कहा गया है कि 4 जून को किए गए एक फील्ड सर्वे के दौरान याचिकाकर्ताओं की संपत्तियों को तोड़फोड़ के लिए चिह्नित कर दिया गया, जबकि ये या तो चिह्नित क्षेत्र के बाहर थीं या फिर पीएम-उदय योजना के अंतर्गत वैध ठहराई जा सकती थीं।
“अब तक न तो कोई सीमांकन रिपोर्ट सौंपी गई है और न ही पीएम-उदय के अंतर्गत पात्रता की पुष्टि की गई है,” याचिका में कहा गया। इसमें यह भी तर्क दिया गया कि प्रस्तावित तोड़फोड़ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों, आजीविका के अधिकार और समानता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी उल्लेख किया कि हाईकोर्ट ने इसी प्रकार की स्थिति वाले अन्य निवासियों को पहले अंतरिम राहत दी है। उल्लेखनीय है कि 11 जून को अदालत ने आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान द्वारा दायर एक जनहित याचिका में कोई राहत देने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि ऐसे मामलों में समग्र आदेश देना व्यक्तिगत दावों को खतरे में डाल सकता है। हालांकि, 16 जुलाई को दायर एक अन्य याचिका में अदालत ने इसी तरह यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।
डीडीए की यह तोड़फोड़ कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के 7 मई के आदेश के अनुपालन में की जा रही है, जिसमें दिल्ली के ओखला गांव स्थित मुरादी रोड पर खासरा नंबर 279 की 2.8 बीघा (0.702 हेक्टेयर) भूमि पर अवैध निर्माण हटाने का निर्देश दिया गया था। बीते कुछ हफ्तों में डीडीए द्वारा इसी क्षेत्र में कई बेदखली अभियान चलाए गए हैं।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 जुलाई को होगी, जहां हाईकोर्ट यह मूल्यांकन करेगा कि डीडीए की तोड़फोड़ की कार्रवाई कानूनी रूप से उचित है या नहीं और इससे प्रभावित निवासियों के अधिकारों का क्या हनन हुआ है।